Monday 28 January 2019

शामें

शामों का लुफ्त तो आम आदमी ही उठाता हैं,
खास क्या जाने ये शामें कितना कुछ सिखाती हैं।

किसी प्रेमी को याद दिलाती हैं अपनी प्रेमिका की,
किसी गरीब की दिनभर की मेहनत का फल उसे दो निवालों के रूप मे दे जाती हैं।

किसी को यह ढलता सूरज अपने आगोश मे ले लेता हैं,
किसी परिवार मे उजाला ही चांद के आने से होता हैं।

ऊंची इमारतों और महँगी कारो मे घुमने वाले क्या जाने,
घर के बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक को शामों का इन्तजार रहता हैं।

पत्नि राह तंकती हैं पति के शाम को अपने कार्यस्थल से घर आने की,
बच्चों को अपने माता-पिता के अपने पास आकर प्यार जताने का इन्तजार रहता हैं।

वहीं दुसरी और पति को अपनी पत्नि की मीठी मुस्कुराहट का,
बच्चों की घर पहुँचते ही मिलने वाली प्यारी सी बातों का इन्तजार रहता हैं।

बुजुर्ग इन्तजार मे रहते हैं, लौट के आने को अपनो के,
कुछ वक्त अपने परिवार के साथ बिताने हँसी-खुशी बिताने के ।

कुछ वक्त को अपने कुछ सह उम्र मित्रो के साथ टहल आने के,
दिनभर का अपना किस्सा अपनो को सुनाने के।

किसी को शामों की मन्दिर की आरती, किसी को मस्जिद की नमाज का,
किसी को अपने परिवार का, किसी को अपने यारो का इन्तजार रहता हैं।

शामो को ही एक परिवार पुरा साथ होता हैं,
शायद इसीलिये आम आदमी को शामों का इन्तजार इतना रहता हैं।

शामों के साथ यादें भी बहुत सी जुड़ जाती हैं,
किसी के चेहरे पर अपनो को पाकर मुस्कान आती हैं, तो किसी की आँखें किसी खास की यादों मे उसके साथ बितायें लम्हों को याद कर भीग जाती हैं।

मगर यह अनुभव एक आम और गरीब आदमी ही अनुभव कर पाता हैं,
जो रिश्तों की सच्ची कीमत जान पाता हैं।

हर किसी के नसीब मे यह शामों के एहसास नही होते,
कुछ खास होकर भी इतने खास नही होते।

आयुष पंचोली
©ayush_tanharaahi
#kuchaisehi #ayushpancholi #hindimerijaan

Monday 21 January 2019

"विधवा" वेदना एक स्त्री की

विरह व्यथित हैं मन यह मेरा,
साज ना श्रँगार कोई तन को भावे।
हे नाथ ,अनाथ बनाकर तुम,
क्यो तन्हा मुझको छोड़ गये।

साथ सात फेरो के,
सात जन्मों तक साथ निभाने का वचन ले,
बीच राह मे मुझे अकेला छोड़ गये।

क्या यह प्यार तुम्हारा था,
यह तो बताओ जानम,
आखिर क्या दोष हमारा था।

अब जीवन ताना बन बैठा हैं,
सोलह श्रँगार कर सजती थी जो तुम्हारे इन्तजार मे,
आज उस अभागन का श्रँगार सफेद साड़ी बन बैठा हैं।

विधवा कहते हैं लोग मुझे ,
कहते हैं , मैं कुल्टा हूँ,
कुल का नाश मैं करने आई,
कुलक्षणी मैं विपदा हूँ।

मेरी क्या गलती हैं बोलो,
मैं भी तो निर्बल मनुष्य हूँ।
मैने अपना सबकुछ खोया,
फ़िर कैसे मैं निष्ठुर हूँ।

कहते हैं सब विधवा का जीवन ,
अभिशाप ईश्वर का हैं।
पर मैने क्या गुनाह किया,
क्या ईश्वर बतलाएगा।

माता भी पूजित होती हैं,
उनके विधवा रूप मे।
पर गाली मिलती हैं मुझको,
मेरे अथाह दुख मैं।

मैं विधवा हुई,
इसमे कसूर क्या मेरा हैं।
काल के आगे चली हैं किसकी,
काल पर किसका पहरा हैं।

मैने भी देखे थे कुछ सपने,
जीना था मुझे भी जीवन मेरे हमसफर के साथ मे।
पर विधि की नियति को कुछ और ही मन्जूर था,
शायद किस्मत को मुझे सुहागन नही विधवा के रूप मे देखने मे मिलना सुकून था ।

मेरे सारे सपने स्वाह हो गये,
सात फेरे जो लिये अग्नि के सामने,
सात जन्मो तक साथ निभाने का वादा किया,
आज उसी अग्नि मे सातो जन्म के सपने भी राख हो गये।

अब जीना नही चाहती मैं,
पर फ़िर भी मुझे जीना पड़ेगा।
आँसुओ का समन्दर घूंट घूंट कर पीना पडेगा।

किसी माँ ने अपना बेटा खोया,
किसी बाप ने अपना सहारा।
किसी भाई ने खोया हमराज अपना,
किसी बहन ने खोया कोई दोस्त प्यारा।
मगर मेरा क्या , मैने तो खोया अपना संसार,
जिसने थाम हाथ मेरा दिया था मुझे सहारा।

पर फ़िर भी कसूर वार ,
मैं ही क्यो हूँ।
पापिन, अभागिन , कुल्टा,
कुलक्षिणी मैं ही क्यो हूँ।
हर शुभ कार्य से होता हैं तिरस्कार मेरा,
आखिर कोई तो बता दे अपराध मेरा।

आखिर क्या कसूर मेरा हैं,
कोई मुझको इतना बतला दे।
मैने क्या पाप किया हैं,
कोई तो कुछ बतला दे।

आयुष पंचोली
©ayush_tanharaahi

#kuchaisehi #ayushpancholi #hindimerijaan #ayusoi

Friday 18 January 2019

एक सच्ची कहानी, मेरी जुबानी

एक लड़का था पागल सा,
एक गरीब परिवार मे जन्मा था।
माँ बाप का अपने वो एक लौता सहारा था,
सबकी नजरों मे एक शख्स दिल का बड़ा प्यारा था।
अव्वल आता था पढाई मे हर जगह,
रिश्तों का ख्याल उसे बहुत ज्यादा था।
भोला-भाला, सीधा-साधा सबसे जुदा,
लोगों द्वारा हरपल छला जाता बेचारा था।
पिता थे अध्यापक उसके ,
सपना पिता का बनाना उसे प्राध्योगिकी का ज्ञाता था।
पर सपना उस लड़के का बनना,
ज्योतिष का ज्ञाता और I.A.S था।
बचपन से वो बेचारा प्यार किसी को करता था,
उसके दिल मे सिर्फ ख्याल एक उसी का पलता था।
पिता की आज्ञा का पालन उसने किया,
लाकर अव्वल अंको के साथ प्राध्योगिकी का प्रमाण पत्र उसने उन्हे दिया।
इसी के साथ उसके प्यार को 9 वर्ष का समय भी पुरा हो गया,
लड़का एक नामी कंपनी मे प्रबंधक बन गया।
पर किस्मत को कहां उसकी खुशी रास आई,
9 वर्षो के प्रेम को वो लड़की युहिं ठुकरा के कहीं और चली आई।
थी कोई दोस्त उस लड़की की जो कहती रहती थी लडके को,
वो धौखा दे रही हैं तुम्हे, पर उसे किसी पर विश्वास नही होता था।
सोचो उस शख्स पर क्या गुजरी होगी,
जो किसी को प्यार करता हो और उसकी कोर्ट मैरिज का गवाह भी वही बना हो।
टूट गया था बहुत वह, खुद को खत्म करने का कदम उठा बैठा था,
मगर किस्मत को ना जाने क्या मन्जूर था, जो ईश्वर उसे बचा बैठा था।
पर एक मानसिक बिमारी ने उसको जकड़ लिया,
दुआ आई किसी की काम या कर्म उसके अच्छे थे, उसे फ़िर जीने का एक और मौका ईश्वर ने दिया ।
फ़िर आया कोई वापस उसकी जिन्दगी मे उसी शिद्दत उसी मोहब्बत के साथ,
पर उसका अन्जाम भी वही रहा, मोहब्बत मे धौखा उसे एक बार फ़िर मिला।
इसी बीच उसका कोई अपना,
स्तन कैंसर का शिकार हो उसका साथ हमेशा के लिए छोड़ गया।
इस बार फ़िर वहीं हुआ, टूट कर बिखर गया था वो,
अपने अन्त को गले लगाने चला था वो।
लगभग 3 माह अस्पताल मे रहने के बाद,
वो फ़िर खड़ा हो गया।
आज वो जी रहा हैं,
मगर सपने सारे उसके मोहब्बत की भेंट चढ़ गये।
अब वो सिर्फ खुद के और ईश्वर के लिये जीता हैं,
सबकुछ खोकर भी उसने पाया हैं बहुत कुछ इसी आस मे गम सारे पीता हैं।
माँ, पिता साथ तो हैं उसके ,
मगर अफ़सोस अपनी करनी पर करते हैं।
क्यो समझ नही पाये वो हालात अपने बच्चे के,
क्यो साथ नही दे पाये उसका, सोच कर मन ही मन जलते हैं।
आज वो लड़का एक ज्योतिषी बन बैठा हैं,
मोहब्बत के नाम से बस वह नफरत ओड़े बैठा हैं।
माता-पिता को उसके, जमाने वाले उसके नाम से जानते हैं,
लोग सारे उसे गुरुजी के नाम से पुकारते हैं।
शाक्य पंथ को अपनाकर , माता की साधना मे वो लिप्त रहता हैं,
उसके जीवन मे अब सिर्फ परोपकार ही सर्वोपरी रहता हैं।
माता पिता को उसके गर्व तो हैं उसपर,
मगर एक टीस मन मे हर पल होती हैं।
क्या सच मे जिन्दगी किसी की भी,
बिना इम्तहान के पूरी नही होती हैं।💖
आयुष पंचोली
©ayush_tanharaahi
#kuchaisehi #ayushpancholi #hindimerijaan

Saturday 12 January 2019

हाँ बुरा हूँ मैं

शायद गलत हूँ मैं,
शायद बुरा भी हूँ।

हाँ गलत हूँ मैं, जो किसी पर भी आरोप लगा देता हूँ,
क्यो नही देख पाता मैं, मैं खुद भी तो कितनी ही बुराईयों का एक घड़ा हूँ।

हाँ बुरा हूँ मैं, बेवजह ही किसी को भी दुख पहुँचा देता हूँ,
क्यो नही समझ पाता मैं, मैं किसी को दुख पहुँचा सुख कहाँ पा सकता हूँ।

शायद गलत हूँ मैं,
शायद बुरा भी हूँ।

एक बात सोचता हूँ, किसने दिया मुझे यह अधिकार,
करता रहूँ जो अपने कर्मो से अपने शब्दों से औरो पर प्रहार।

किसने दिया मुझे यह अधिकार,
की उठाऊँ मैं, किसी के चरित्र पर कोई सवाल।

शायद गलत हूँ मैं,
शायद बुरा भी हूँ।

मैं मनुष्य हूँ ,जानता हूँ मैं,
बुराईयों का पुतला हूँ मैं, यह मानता हूँ मैं।

मैं सवाल हूँ खुद ईश्वर के लिये,
अहं की परकाष्टा हूँ इस नश्वर जीवन के लिये।

शायद गलत हूँ मैं,
शायद बुरा भी हूँ।

कही राम की मर्यादा की बातें करता हूं मैं,
कही कृष्ण के प्रेम को महान बताता हूँ।

पर बात आती हैं जब खुद पर , उसी प्रेम को अपमानित कर,
सभी मर्यादाओं का उल्लंघन खुद ही कर आता हूँ।

शायद गलत हूँ मैं,
शायद बुरा भी हूँ।

रावण को बुरा बताता हूं मैं,
पर आसाराम को पुज्य मानता हूँ।

गीता और कुरान के नाम पर लड़ जाता हूँ,
पर उन्हे कभी पढ़ समझ नही पाता।

शायद गलत हूँ मैं,
शायद बुरा भी हूँ।

पर एक बात कहूँ, मैं जैसा भी हूँ,
मनुष्य हूँ, अपने कर्म से अपना भाग्य बना सकता हूँ।

मैं चाहू जिसे ईश्वर बना दूँ,
मैं चाहू जिसे राक्षस बना सकता हूं।

जो मेरी दुनिया का हिस्सा हैं वह मेरा हैं,
जो नही वह मेरा नही ।

बस इसी सोच का पहरा,
मेरे दिलो-दिमाग पर गहरा हैं।

बस इसलिये ही गलत हूँ मैं,
और बुरा भी हूँ।

आयुष पंचोली
©ayush_tanharaahi

#kuchaisehi #ayushpancholi #hindimerijaan

Sunday 6 January 2019

"चुनाव" राजनीति का अखाड़ा या जनता को मूर्ख बनाने का खेल

समझ नही पाया मैं कभी क्या हैं यह चुनाव का खेल,
जनता चुनती हैं नेता अपना या करती हैं,
अपने ही हाथों अपने भविष्य से खेल।

बहुत से नियम होते हैं चुनाव मे , मतदाताओं के लिये,
पर नेताओ के लिये कोई नीयम क्यो नही बनाया जाता।

कोई व्यक्ति हो जिसपर कौई भी आपराधिक प्रकरण,
वो कभी किसी सरकारी नौकरी का पात्र नही होता।
तो फ़िर क्यों यह नीयम राजनताओ के लिये मान्य नही होता।

बिना पढ़े लिखे पा नही सकता कोई भी व्यक्ति कोई पद सरकारी,
फ़िर ना जाने क्यो दे दी जाती हैं, अनपढ़ों के हाथों मे देश की जिम्मेदारी।

जब कोई मतदाता एक ही जगह अपने मत का प्रयोग एक चुनाव मे एक बार ही कर सकता हैं,
पर राजनेता कोई भी हो कितनी ही जगह से वो चुनाव लड़ सकता हैं।

एक सरकारी कर्मचारी लगभग 35 से 40 वर्ष तक सतत् कार्य करने के बाद सेवानिवृत्त हो पेन्सन प्राप्त करने का अधिकार पाता हैं,
फ़िर क्यो किसी राजनेता को 5 वर्षो के कार्यकाल के बाद ही यह अधिकार मिल जाता हैं।

काली-कमाई करके अपने राजनीतिक कार्यकाल मे एक राजनेता करोड़ो जमा कर लेता हैं,
फ़िर भी जीवन पर्यन्त क्यो उसे सरकारी सेवाओं का लाभ मिलता रहता हैं।

आजकल चुनाव मे एक नये प्रतिनिधि के रूप मे नोटा भी आ गया हैं,
पर सच तो यह हैं यह नोटा नही एक टोटा हैं जिसने भी आम जनता को ही छला हैं।

गर नोटा को देना हैं सही अधिकार तो करो घोषणा, गर समबन्धित विधान सभा कि मतदाताओं की जनसंख्या के गर 20 से 30 प्रतिशत मत भी नोटा को मिले तो सभी उम्मीदवार अघोषित कर पात्रता हीन करार कर दिये जायेंगे,
तब जाकर आम आदमी के लिये यह राजनेता जरुर कुछ कर पायेंगे।

कोई राजनेता आज ऐसा नही हैं जिसके उपर दर्ज कोई आपराधिक प्रकरण नही  हैं,
फ़िर संरक्षण दे रहा उसको वही जिसके उपर आपराधो के नियंत्रण की जिम्मेदारी दि गई हैं।

जब कानून एक हैं, संविधान के नीयम हर भारतीय के लिये एक हैं,
चाहे हो कोई आम आदमी या कोई महान आदमी, संविधान देता सबको अधिकार एक हैं।

फ़िर क्यो जनता को मूर्ख बनाया जाता हैं, हर बार आम आदमी की भावनाओ को छला जाता हैं,
बदलाव की बातें करने से होता क्या हैं, जब पुरा तंत्र ही भ्रष्टाचार मे लिप्त पढ़ा हैं।

आयुष पंचोली
©ayush_tanharaahi

#kuchaisehi #ayushpancholi #hindimerijaan #ayusoi

Friday 4 January 2019

"भीख मांगना" मजबूरी या धन्धा

समझ नही आता मुझको,
क्या सच मे भीख मांगना मजबूरी हैं।
या कोई घृणित कार्य के ऊपर ओढ़ी चादर मैली हैंं।

अच्छे सक्षम युवा भी देखो कैसे हाथ बढ़ाते हैं,
लेकर कटोरा ना जाने क्यो मन्दिर, मस्जिद , चौराहो पर खड़े हो जाते हैं।
या यह सिर्फ एक तरीका हैं, मेहनत से पीछा छुड़ाने का।

सरकार ने कितना कार्य किये इस बुराई को मिटाने के,
सस्ता खाना, रेन बसेरा, मुफ्त की शिक्षा मिलती हैं,
ना जाने क्यो फिर भी लोगों को भीख मांगना पढ़ती हैं।

कुछ लोगों के तन पर गहनों का पहरा होता हैं,
फ़िर भी उनके हाथ मे क्यो भीख का कटोरा होता हैं।
क्या सच मे वह इतने लाचार हैं की कमा नही कुछ सकते हैं,
या फ़िर भीख मांगना मजबूरी नही ऐसे लोगों के धन्धे हैं।

कुछ लोगों की करोड़ो की सम्पत्ति का आकलन हुआ,
पुछा जब उनसे कार्य था उनका, सबको था आश्चर्य हुआ।
कोई ईमानदारी का कार्य कर जीवन पर्यंत ना जो कमा पाया,
कैसे कुछ लोगों ने भीख मांग मांग कर करोड़ो का धन कमाया।

क्या सोचा नही कभी किसी ने क्या सच मे जिन्हे हम दान हैं देते,
वो इसके हकदार भी हैं?
या शायद हम ही हैं जो,
देश मे फैलती इस बिमारी के सूत्रधार भी हैं।

जो सच मे मजबूर हैं , जिनको मदद चाहिये अपनी कुछ मजबूरी मे,
वह कभी किसी के आगे हाथ फैलाते नही।
ऐसे मजबूर लोगों की अच्छाई का फायदा,
कुछ बैगेरत उठाते हैं, भीख को मजबूरी नही जो अपना धन्धा बताते हैं।

ना जाने क्यो हम भी इनको बढ़ावा देते जाते हैं,
मन्दिर , मस्जिद खुद जाते माँगने,
कुछ अच्छा करने की दुआ मांगने,
बाहर आते ही इनको भीख देकर क्या सिद्ध करना चाहते हैं,
जो सच मे मजबूर हैं, क्या हम उनको जान पाते हैं।

करना हैं तो कुछ ऐसा करो ,
जब दिखे कहीं कोई कुछ मांगता तो खबर उसकी नगरीय प्रशासन को करो।
वो उसका त्वरित संज्ञान लेकर उसको सुविधा प्रदान कर देंगे,
इस बहाने ही सही आप भी सच जान जायेंगे,
क्या सच मे भीख मांगना मजबूरी हैं या धन्धा इसका उत्तर जान जायेंगे।

गर सच मे मजबूर हैं वो इंसान तो वो आपको दुआ ही देंगे,
जो मजबूर नही हैं जिनका धन्धा हैं यह, वह वहाँ से प्रस्थान कर लेंगे।🙏

आयुष पंचोली
©ayush_tanharaahi

#kuchaisehi #hindimerijaan #ayushpancholi

Thursday 3 January 2019

आतंकवाद

न धर्म कोई , न जात कोई,
न मजहब की हैं बात कोई।
मर्म है इंसानियत का एक,
लुप्त होती मनुष्यता का एक उदहारण मात्र हैं।
मतभेद हैं सोच का,
एक मानसिक मोच का,
हाँ वहीं जिसे कहते हैं आतंकवाद सभी।

क्या सोचा नही किसी ने कभी,
क्यो राजनीति अन्त कर नही पाती आतंकवाद का,
असल मायनो मे देखा जाये तो,
यह राजनीति ही जनक हैं आतंकवाद का।

अन्त नही हैं विचारों का यह,
एक अलग सोच का एक घातक परिणाम है।
सोच वही जो साबित करना चाहती हैं,
खुद को दुसरे से बेहतर हर पल हाँ वही जेहादी सोच आतंकवाद हैं।

भविष्य दांव पर लगा कर नौजवानो का,
जो थमा देती उनके हाथ मे हथियार हैं।
जिन्हे ज्ञान ही नही कुछ ग्रंथों का,
जिन्होने बनाया नई पीढ़ी की विद्रोही सोच को अपना घातक अविष्कार हैं।
वो जिनके हाथो मे शोभा देती थी किताबें,
जिनके सपने थे बदलाव लाने के।
उनकी सोच को ही कुछ मौका परस्तो ने अपना गुलाम बना लिया,
छिने सपने उनके, उनके हाथों मे जेहाद का यह घातक पैगाम थमा दिया।

किसी की भावनाओं और विचारो से खेला,
कोई था जो दुखी था राजनीति के गलियारों से,
कोई बेरोजगार जो कोंसता था अपने साथ हुएँ छल को,
कोई जात-पात के रोने रोता था,
बनाकर उनकी विद्रोही सोच को हथियार अपना,
पढ़ाकर पाठ आस्तित्व के खो जाने का,
उनकी सोच को अपना गुलाम बना लिया,
देखो कैसे एक बदलाव की सोच मे आई मोच ने आतंकवाद को अपना सहारा बना लिया।

अपने ही लोगों का बनाकर दुश्मन ,
हाथो उनके मौत का पैगाम थमा दिया।
क्या घाटी, क्या गाजा,
ओढकर चादर ऑक्साइड की,
बनाकर बिस्तर मिसाईल का,
हाथ मे बन्दूक , दिल और दिमाग मे जेहाद का फितूर चढ़ा दिया।
देखो कैसे इन्सान की सोच मे आई मोच ने आतंकवाद को पैदा कर,
इंसान को ही इंसानियत का दुश्मन बना दिया।

आयुष पंचोली
©ayush_tanharaahi

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इबादत

मेरा मुल्क, मेरी माता, मेरे पिता,
मेरे गुरु, मेरे अन्नदाता, मेरे रक्षक।
और यह प्रकृती और उसके तत्व बस यही हैं मेरी इबादत,
इनसे शुरु भक्ति मेरी, इन्ही पर खत्म मेरी इबारत।

जब जब शीश झुका प्रभु के आगे,
मन मे जब जब इबादत के भाव जागे,
हो आया स्मरण इन्ही का,
मुझे प्रभु मे नजर आया हर पल बस चेहरा इन्ही का।

मैं पूजता हूँ इन्हे, हैं ईश्वर का प्रत्यक्ष प्रमाण यह,
पहचान के मोहताज नही , हैं धड़कन का राग यह।

माँ जिन्होने जन्म दिया, कितनी सारी पीड़ाओ को सहकर,
मेरे जीवन को अस्तित्व दिया।

पिता जिन्होने मेरे सारे सपनो का ख्याल रखा,
खुद फटे वस्त्रो मे जीते मुझे नया सब हर बार दिया।

मुल्क मेरा माटी वो मेरी जिसने मुझे रहने को उचित स्थान दिया,
मेरे नाम के साथ मे जिसने भारत के मूल निवासी का मुझे गौरव प्रदान किया।

गुरु मेरे जिन्होने मुझको शिक्षा का स्वर्णिम दान दिया,
एक अबोध बालक को जिन्होने शब्दो का बौद्धिक ज्ञान दिया।

अन्नदाता मेरे वो जिन्होने ने अन्न मुझे प्रदान किया,
लाख दुख तकलिफों को सहकर, धरा से अन्न उत्पन्न किया।

रक्षक मेरे वो जो सीमाओ के प्रहरी बनकर खड़े रहे,
भुला के अपने परिवार को मेरी रक्षा को तत्पर रहे।

यह प्रकृती जिससे मैं हर पल लेता आया हूँ, बिना किसी मौल-भाव के जिसने सबकुछ मुझे दिया,
मैने तो कदम कदम पर इसका बस तिरस्कार किया।

तत्व यही पन्च जिन्होने जीवन को आधार दिया,
बिना किसी भी भेद-भाव के सबको अपना करके जिन्होने हर पल परोपकार किया।

इनके अलावा चंद्र , सुर्य भी इबादत के हकदार हैं,
दो प्रत्यक्ष प्रणेता ऐसे जो निश्चल सतत कर्म के असल उदाहरण आधार हैं।

यही सब हैं जीवन मेरा, यही मेरे जीवन के असली रिश्तेदार हैं,
कब माँगा इन्होने कुछ मुझसे, हर पल देते आये हैं।
सारे भेद-भाव को भूलकर बस परोपकार ही करते आये हैं,
क्यो ना पूजूं मैं इनको कोई कारण एक तो बतला दो,
मेरी नजर मे तो बस यही हैं जो "इबादत" के हकदार हैं।
🙏🙏🙏

"आयुष पंचोली"
©ayush_tanharaahi

#kuchaisehi #ayushpancholi #hindimerijaan
#chunautee_hindi

Tuesday 1 January 2019

Daily soaps अंधविश्वास को बढ़ावा देने का सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त जरिया

आम आदमी जो आडम्बरों मे फँसता सबसे ज्यादा हैं,
उसका एक रास्ता यह घटिया नाटको से होकर ही जाता हैं।

आम आदमी ही होता हैं जो सबसे ज्यादा इन बकवास पटकथाओं को देखता हैं,
क्या करे बेचारा दिन भर की काम की थकान का मारा इन कथाओं मे ही कहीं अपनी निजी जिन्दगी की खुशियाँ देखता हैं।

कुछ अच्छे सच्चे और प्रेरणा दायक पटकथाये भी कुछ channel वाले बताते हैं,
कुछ सिर्फ अंधविश्वास का पुरजोर समर्थन करते नजर आते हैं।

T R P के लिये हद से ज्यादा यह  channel वाले गिर जाते हैं,
कुछ अच्छा नही मिलता तो सिर्फ बकवास ही दिखाते हैं।

कोई बताता हैं कथायें भारत के गर्वित इतिहास की,
जिसे देखकर मन मे भी कुछ नया कर गुजरने का हौंसला भर आता हैं।

कोई भुत , प्रेत, डायन , इच्छाधारी नाग- नागिन की मनघडंत कथाओं को दिखा दिखा कर सिर्फ अन्धविश्वास को बड़ावा देता नजर आता हैं।

सिर्फ T R P  पाने के लिये जो लोगों की भावनाओं से खेल जाते हैं,
और इनकी इन्ही मनघडंत झुठी कहानियों मे आम-आदमी यकिन कर , बेवजह के झूठे आडम्बरों मे धंसते चले जाते हैं।

कौई ना जाने सरकार भी इनपर लगाम क्यो नही लगा पाती हैं,
लगता हैं आम-आदमी मे अंधविश्वाष का जहर घोल खुद यह सरकारे अपनी रोटियाँ सेकना चाहती हैं।

एक महिन सा अन्तर होता हैं, विश्वास और अंधविश्वास के बीच,
विश्वास वह जो भरोसा करना सिखाता हैं, मगर तथ्यों के साथ,
और अंधविश्वास वो जहाँ कोई तथ्य नही होता।

क्या सच मे हमारे देश की जनता देश के वीर सपूतो की गाथाओ, वेद पुराणो की बातों, और ईश्वर के अस्तित्व को भुला,
यह भुत, चुड़ैल, प्रेत, डायन, इच्छाधारी नाग-नागिन की अंधविश्वाष से युक्त कथाओं को देखना चाहती हैं।

सच को भुला वापस झुठ का चोला पहन,
आडम्बरों के आगे शीश झुकाना चाहती हैं।

क्यो नही करते हम बहिष्कार किसी घटिया सोच की उपज से उपजे ऐसे अन्ध्विश्वास से युक्त कथाओ का,
क्यो बढ़ावा देते हैं इन्हे, जिनका धन्धा ही हैं गोरख काली कमाई का।

आयुष पंचोली
©ayush_tanharaahi

#kuchaisehi #ayushpancholi #hindimerijaan

सच्चे लोग

जरा जरा सी बात पर जिनकी आँखे भीग जाती हैं, वो लोग जीवन मे कभी किसी का बुरा चाह नही सकते। पर एक सच यह भी हैं, वो जीवन मे कभी किसी को अपना बना...