आज भी इन्तजार उसी का हैं,
दिल मेरा यह तलबगार उसी का हैं।
वो जो खेल गया जज्बातों से मेरे,
एहसासो की सरे आम चिता जला गया।
धडकने साथ छोड़ना चाहती हैं अब,
सांसे पनाह माँगती हैं।
देखो कम्जर्फ़ मेरी रूह को,
आज भी ऐहतराम बस उसी का हैं।
आयुष पंचोली
©ayush_tanharaahi
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