Tuesday, 6 November 2018

खुशी

खुशी....

सबके लिये खुशी के मायने अलग हैं,

कोई खुश हो जाता हैं, अपनो की खुशी में,
किसी को ,किसी को रुलाकर खुशी मिलती हैं।
एक माँ होती हैं, जिसे अपने परिवार की खुशी मे अपनी खुशी मिलती हैं।
एक पिता होता हैं, जो अपने बच्चों के पूरे होते सपनो को देख खुश हो जाता हैं।
एक बच्चा अपनी माँ के आँचल को पाकर खुश होता हैं।
तो एक बहन अपने भाई के मजाकों मे खुश होती हैं।
वहीँ एक भाई अपनी बहन को अपनी माँ, अपनी बेटी की तरह अपनाकर खुश होता हैं।
किसी को खुशी माँ, बाप को खुश रखने मे मिलती हैं।
किसी को खुशी पैसों में दिखती हैं।
एक प्रेमी युगल की खुशी अपने प्रेम के साथ होती हैं।
कुछ ऐसे भी होते हैं, जिनकी खुशी सिर्फ अपना सम्मान होती हैं।
किसी को खुशी मातृभूमि की रक्षा मे मिलती हैं,
तो किसी को खुशी पृकृति की सुरक्षा मे।
कोई कुछ ना पाकर भी हर पल खुशी मे झूमत हैं,
कोई सबकुछ पाकर भी हर जगह सिर्फ खुशी को ढुँढता हैं।
किसी को भक्ति मे खुशी मिलती हैं।
किसी को शक्ती मे खुशी मिलती हैं।
कोई अपमान सहकर भी खुश हो जाता हैं,
कोई सम्मान पाकर भी खुशी को तरस जाता हैं।

पर सच कहुँ तो खुशी तो सिर्फ परिवार के साथ ही होती हैं,
जिसके पास कुछ ना होकर भी अगर परिवार हैं तो वो खुश,
जिसके पास सबकुछ , पर परिवार नही वो ना खुश।

और जो छोटी छोटी खुशियों मे भी खुश हो जाता हैं,
वो खुशी खुशी जीता हैं, और सबको खुशी दे पाता हैं।

सच ही तो हैं , सबके लिये खुशी के मायने अलग ही तो हैं।

आयुष पंचोली
©ayush_tanharaahi

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