कितना खूबसुरत था वो नजारा, ना था दुनिया का गम , ना कोई दुश्मन हमारा।
जब पहली बार मैने माँ के शरीर मे आराम पाया।
कितने खुश थे, मेरे माता-पिता जब मे कोख मे एक भ्रूण था।
कितनी खुशियाँ थी, माँ भी खुश, पापा भी खुश, सारा परिवार खुशी से झूम रहा था, और मैं धीरे धीरे आकार ले रही थी।
मेरी माँ की खुशी का कोई ठिकाना ना था,
पापा को दुखी होने का कोई बहाना ना था।
पर किसे पता था, ऐसा भी एक दिन आयेगा। भगवान का वहीं दुसरा रूप अपने पेशे से भी गद्दारी कर जायेगा।
जब पता चला जमाने को की, मैं एक लड़की हूँ, सारी खुशियां गम में बदल गई,
पापा की हसीं भी जाने कहाँ खो गई,
माँ भी मेरी गमों मे समा गई।
आखिर में सबकी खुशी के आगे माँ को , मुझे त्यागना पड़ा।
आज फिर इस बेदर्द जमाने के आगे, एक और लड़की को बिना जन्म लिये ही भागना पड़ा।
क्या गलती थी मेरी? कि मैं एक लड़की थी, या मैं लड़का नही,
क्या गलती थी उस माँ की ? जिसने मुझे कुछ महीने कोख में पाला,
क्या गलती थी हमारी? की वो एक स्त्री होकर एक और स्त्री को इस दुनिया मे ला रही थी,
आखिर क्या थी हमारी गलती?
जो मेरी माँ के आँसु भी ना धो सँके ,और मुझे इस दुनिया मे आने से पहले ही कुछ अपनो ने धोखा दे दियां।
पीठ मे नही, खंजर सीधे सीने में ही घोंप दिया।
आज मैने एक लड़की होने की सज़ा पायी हैं,
बिना धरती पर कदम रखे अपनी जान गवाई हैं।
सोचा था मैने भी की मैं, अपने माँ-पापा की आँखों का तारा बनूंगी,
पर मुझे मालुम ना था, मुझे तो अपनाया ही नही जायेगा,
दुनिया मे कदम रखने से पहले ही मुझे मिटा दिया जायेगा।
शायद यहीं हैं एक लड़की होने की सज़ा,
इसलिये मुझे मिली बिना जन्मे ही, मौत की सज़ा ।
इसलिये मुझे मिली बिना जन्मे ही मौत की सज़ा।
(1/6/2015)कुछ पुराना लिखा।
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