Monday 21 January 2019

"विधवा" वेदना एक स्त्री की

विरह व्यथित हैं मन यह मेरा,
साज ना श्रँगार कोई तन को भावे।
हे नाथ ,अनाथ बनाकर तुम,
क्यो तन्हा मुझको छोड़ गये।

साथ सात फेरो के,
सात जन्मों तक साथ निभाने का वचन ले,
बीच राह मे मुझे अकेला छोड़ गये।

क्या यह प्यार तुम्हारा था,
यह तो बताओ जानम,
आखिर क्या दोष हमारा था।

अब जीवन ताना बन बैठा हैं,
सोलह श्रँगार कर सजती थी जो तुम्हारे इन्तजार मे,
आज उस अभागन का श्रँगार सफेद साड़ी बन बैठा हैं।

विधवा कहते हैं लोग मुझे ,
कहते हैं , मैं कुल्टा हूँ,
कुल का नाश मैं करने आई,
कुलक्षणी मैं विपदा हूँ।

मेरी क्या गलती हैं बोलो,
मैं भी तो निर्बल मनुष्य हूँ।
मैने अपना सबकुछ खोया,
फ़िर कैसे मैं निष्ठुर हूँ।

कहते हैं सब विधवा का जीवन ,
अभिशाप ईश्वर का हैं।
पर मैने क्या गुनाह किया,
क्या ईश्वर बतलाएगा।

माता भी पूजित होती हैं,
उनके विधवा रूप मे।
पर गाली मिलती हैं मुझको,
मेरे अथाह दुख मैं।

मैं विधवा हुई,
इसमे कसूर क्या मेरा हैं।
काल के आगे चली हैं किसकी,
काल पर किसका पहरा हैं।

मैने भी देखे थे कुछ सपने,
जीना था मुझे भी जीवन मेरे हमसफर के साथ मे।
पर विधि की नियति को कुछ और ही मन्जूर था,
शायद किस्मत को मुझे सुहागन नही विधवा के रूप मे देखने मे मिलना सुकून था ।

मेरे सारे सपने स्वाह हो गये,
सात फेरे जो लिये अग्नि के सामने,
सात जन्मो तक साथ निभाने का वादा किया,
आज उसी अग्नि मे सातो जन्म के सपने भी राख हो गये।

अब जीना नही चाहती मैं,
पर फ़िर भी मुझे जीना पड़ेगा।
आँसुओ का समन्दर घूंट घूंट कर पीना पडेगा।

किसी माँ ने अपना बेटा खोया,
किसी बाप ने अपना सहारा।
किसी भाई ने खोया हमराज अपना,
किसी बहन ने खोया कोई दोस्त प्यारा।
मगर मेरा क्या , मैने तो खोया अपना संसार,
जिसने थाम हाथ मेरा दिया था मुझे सहारा।

पर फ़िर भी कसूर वार ,
मैं ही क्यो हूँ।
पापिन, अभागिन , कुल्टा,
कुलक्षिणी मैं ही क्यो हूँ।
हर शुभ कार्य से होता हैं तिरस्कार मेरा,
आखिर कोई तो बता दे अपराध मेरा।

आखिर क्या कसूर मेरा हैं,
कोई मुझको इतना बतला दे।
मैने क्या पाप किया हैं,
कोई तो कुछ बतला दे।

आयुष पंचोली
©ayush_tanharaahi

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