Monday 28 January 2019

शामें

शामों का लुफ्त तो आम आदमी ही उठाता हैं,
खास क्या जाने ये शामें कितना कुछ सिखाती हैं।

किसी प्रेमी को याद दिलाती हैं अपनी प्रेमिका की,
किसी गरीब की दिनभर की मेहनत का फल उसे दो निवालों के रूप मे दे जाती हैं।

किसी को यह ढलता सूरज अपने आगोश मे ले लेता हैं,
किसी परिवार मे उजाला ही चांद के आने से होता हैं।

ऊंची इमारतों और महँगी कारो मे घुमने वाले क्या जाने,
घर के बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक को शामों का इन्तजार रहता हैं।

पत्नि राह तंकती हैं पति के शाम को अपने कार्यस्थल से घर आने की,
बच्चों को अपने माता-पिता के अपने पास आकर प्यार जताने का इन्तजार रहता हैं।

वहीं दुसरी और पति को अपनी पत्नि की मीठी मुस्कुराहट का,
बच्चों की घर पहुँचते ही मिलने वाली प्यारी सी बातों का इन्तजार रहता हैं।

बुजुर्ग इन्तजार मे रहते हैं, लौट के आने को अपनो के,
कुछ वक्त अपने परिवार के साथ बिताने हँसी-खुशी बिताने के ।

कुछ वक्त को अपने कुछ सह उम्र मित्रो के साथ टहल आने के,
दिनभर का अपना किस्सा अपनो को सुनाने के।

किसी को शामों की मन्दिर की आरती, किसी को मस्जिद की नमाज का,
किसी को अपने परिवार का, किसी को अपने यारो का इन्तजार रहता हैं।

शामो को ही एक परिवार पुरा साथ होता हैं,
शायद इसीलिये आम आदमी को शामों का इन्तजार इतना रहता हैं।

शामों के साथ यादें भी बहुत सी जुड़ जाती हैं,
किसी के चेहरे पर अपनो को पाकर मुस्कान आती हैं, तो किसी की आँखें किसी खास की यादों मे उसके साथ बितायें लम्हों को याद कर भीग जाती हैं।

मगर यह अनुभव एक आम और गरीब आदमी ही अनुभव कर पाता हैं,
जो रिश्तों की सच्ची कीमत जान पाता हैं।

हर किसी के नसीब मे यह शामों के एहसास नही होते,
कुछ खास होकर भी इतने खास नही होते।

आयुष पंचोली
©ayush_tanharaahi
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