यहां मनुष्य तो बहुत से है ,
पर इंसानो की कमी खलती बहुत हैं।
किरदार खुद का ही पता नही किसी को,
कमी दूसरों मे नजर आती बहुत हैं।
बड़ी बड़ी बातें करते हैं,
सोच छोटी जो लेकर।
अहंकार की झलक उनकी बातों मे,
स्पष्ठ उभर कर आती बहुत हैं।
कोई नादान नही हैं यहां,
चाले सबकी, हर किसी की समझ मे आती बहुत हैं।
कोई कुछ कहता नही तो,
कमजोर ना समझे उसे।
शेरों की भाषा गीदड़ों को,
समझ आती नही हैं।
शान्त-चित्त, गम्भीर बने बैठा हैं जो,
खुल जाये जो नेत्र उसका,
तो वो शक्ती तबाही लाती बहुत हैं।
औकात नही जिनकी, आँखे मिला सके दुनिया वालों से,
बातें उनकी बगावत के बोल गुनगुनाती बहुत हैं।
कलम चलती हैं ,तो आग उगलती ही हैं,
पाकर साथ वायु का यह तबाही लाती बहुत हैं।
क्या रखा हैं, बेवजह की बातों मे,
यह बिगड जाये तो गहराईयौं के राज खंगोल के लाती बहुत हैं।
सम्मान चाहते हो तो सम्मान देना भी पड़ता हैं,
कुछ बातों को नजर अंदाज करना भी पड़ता हैं।
परिवार के सभी सदस्य पुर्ण होते नही कभी,
परिवार को पुर्ण करने के लिये त्याग करना भी पड़ता हैं।
नही हो भावना गर त्याग की, तो बातें सब बकवास हैं,
यह बेवजह की बादशाहत,जलील करवाती बहुत हैं.......!!!!!
आयुष पंचोली
©ayush_tanharaahi
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