उम्मीदों के आसमान को वो मुकाम पर पहुँचाना जानती हैं,
भुख भी हार जाती हैं, जब लगन कुछ कर दिखाने की अन्तर्मन मे शौर मचाती हैं।
कुछ तस्वीरें शब्दों की मोहताज नही होती यारा,
बिन अल्फाजो के भी वह सबकुछ कह जाती हैं।
ना घर, ना रोटी की चाहत ,ना वस्त्रों का मोह हमे,
अल्फ़ाजो का ज्ञान चाहिये, हमको हमारी पहचान चहियें।
मत दो हमको भीख कोई भी,
रोटी, कपड़ा, मकान की।
देना हैं तो दे दो दीक्षा,
बस वर्णो के ज्ञान की।
हम खुद के दम पर भी मुकाम नया पा सकते हैं,
गर इतना सा साथ कोई दे हम भी सम्मान पा सकते हैं।
सबसे विनती बस इतनी हैं,
घृणित नही समझो हमको।
मात-पिता हम लोगो के शिक्षा से वंचित क्या हुएँ,
आज हमारा हाल तो देखो हम अपनी पहचान से दूर हुएँ।
शिक्षा का महत्व क्या हैं ,अब हमको समझ मे आया हैं,
इसलिये हमने भी अब कलम को अपना बनाया हैं।
बस गुजारिश हैं इतनी सी,
हमको भी उचित शिक्षा का आधार मिले।
किसी प्रकार की कौई भीख नही चाहिये,
हमे वर्णो का उचित ज्ञान मिले।
हम जीते हैं, गम पीते हैं,
खून के आँसू हर दम पीते हैं।
मौसम आते जाते रहते,
हम हरदम मरते रहते हैं।
बस इतना उपकार ही करदो,
जो शिक्षा पाना चाहते हैं, उनका ही सम्मान तो करदो।
दुनिया के साथ वो कदम मिलाये,
ज्ञान की हर पल अलख जगाये।
अपनी उम्मीदों के दम पर,
अपना हम मुकाम बनाये।
ज्ञान को अर्जित कर पाये हम,
अपना नाम और सम्मान हम पाये।
अपने हौसलों के दम पर हम,
भारत मे नई क्रान्ति लाये।
आयुष पंचोली
©ayush_tanharaahi
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