कला सिखाती नही अपमान करना,
कला का तो काम हैं सम्मान करना।
मान और अपमान के मोह से परे,
कला का काम हैं, सत्कार करना।
वो कला ,कला हो नही सकती,
जो कला का अपमान करती फिरें।
वो कलाकार कैसा कलाकार,
जो किसी कलाकार से ईर्ष्या की भावना रखे।
कला ही कलाकार का अभिमान होती हैं,
यह कला ही तो हैं जो ईश्वर का वरदान होती हैं।
कला का रिश्ता कलाकार की आत्मा से जुडा होता हैं,
जो आत्मा किसी की कला का मान ना रखे उसके विरुद्ध तो परमात्मा भी होता हैं।
कला रख नही सकती किसी से द्वेष जीवन मे,
कलाकार कैसा वो बिगड़ जाये जो यौवन मे।
कला अपनी खासियत पहचानती तो हैं,
कोई प्रतिकार कितना भी करे , कला नम्रता को सर्वोपरी मानती तो हैं।
कला अहं नही करती, कला वहम मे नही पलती,
कला अपनी मर्यादाओं को पहचानती तो हैं।
कला सुसज्जित होती हैं, कला के हर पल मंथन से,
कलाकारो के हर पल होते आत्म-मंथन से।
कलाकारों के मन मे अहं का भाव नही होता,
कलाकार कभी किसी को बुरा नही कहता।
कलाकार का यह गुण, उसे कला सिखाती हैं,
कला कलाकार की करुणा बन जाती हैं।
कला ना रूप को देखे, कला ना रंग कोई जाने,
कला ना जात-पात और धर्म के कौई भेद को माने।
कला स्वाभिमान सिखाती हैं, अभिमान नही प्यारे,
कला जीवन की शैली हैं , कौई सोच नही प्यारे।
कला ही जो हर कला का मान रखती हैं,
कलाकार की कल्पनाओ को साकार करती हैं।
जहाँ पर दंभ , अहं , पाखण्ड का संसार होता हैं,
वहाँ कला और कलाकार नही घृणित सोच का व्यापार होता हैं।🙏🙏
आयुष पंचोली
©ayush_tanharaahi
#kuchaisehi #ayushpancholi #hindimerijaan
No comments:
Post a Comment