यह रचना समर्पित हैं उस पीढी को जिसने जन्म लिया जब भारत गुलाम था । जो अब सिर्फ कुछ सालो बाद हमारे बीच से अपना अस्तित्व हमेशा के लिए खो देगी। बस उसी पीढ़ी के एक व्यक्ति के रूप मे खुद को अनुभव कर कुछ लिखने का प्रयास किया हैं।
जिस तरह मुझसे सब रूठते हैं ना,
एक दिन मै भी सबसे रूठ जाऊंगा।
कौई बात नही करता मुझसे,
मैं सबसे दूर चला जाऊंगा।
टोंकता हूँ, समझाता हूँ, तो चुभता हूँ आँखो मे,
एक दिन सबकी आँखो मे आँसू दे जाऊंगा।
मेरी बातें कड़वी लगती हैं सबको,
एक उम्र ढ़ल जाने दो, तुम्हे हर बातों मे मैं ही नजर आऊंगा।
मेरी उम्र का क्या हैं यह तो ढल चुकी हैं,
कुछ समय मे ,मैं भी ढल जाऊँगा।
मैं करता हूँ बातें सभ्यता और संस्कारो की,
कुछ सभ्य सुविचारो की।
तुम मानते नही हो कहना मेरा,
एक दिन यही बातें तुम्हे सताएंगी।
जब तुम्हारी अपनी संतान तुमसे जिबान लड़ाएँगी,
तब तुम्हे मेरी बातें याद आयेंगी।
धीरे-धीरे समय गुजरता जायेगा,
देखते देखते ही हमारी इस पीढी का अस्तित्व खत्म हो जायेगा।
वो पीढ़ी जो आज भी सूर्योदय से पहले उठ,
नित्य क्रिया कर लेती हैं।
वह पीढ़ी जो ईश्वर को भोग लगाये बिना,
अन्न का दाना भी नही लेती हैं।
वह पीढ़ी जो आज भी संस्कृतियों को
सहेज बैठी हैं।
वह पीढ़ी जो तरह तरह के देसी
नुस्खे बताती हैं।
वह पीढी जो त्योहारो का असली
मतलब समझाती है ।
वह पीढी जो हमसे ज्यादा शिक्षा
गृहण ना कर पाई,
पर परिवारों को सहेझना बेहतर
जिसने सीखा था।
वह पीढ़ी जो आज भी हेल्लो ,हाय की जगह
राम-राम, से बातों की शुरुवात करती हैं।
जिसके होने से घर की रौनक,
हर पल बड़ती हैं।
हां कुछ पाँच या दस वर्षो मे तुमसे जुदा हो जायेगी,
फ़िर यह सारी बातें किस्से कहानियों मे रह जायेगी।
हाँ यह पीढ़ी रूठ गई तो,
हमेशा के लिये जुदा हो जायेगी।
आयुष पंचोली
©ayush_tanharaahi
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