बदलते मौसम, बदलती दुनिया,
प्रकृती के नीयम को आगे बेमतलाब पछताना क्या।
रात के बाद ही ,सुबह आयेगी, काली अंधियारी छट जायेगी।
जीवन के इस बड़े सफर मे, छोटी-छोटी बातों को दिल से लगाना क्या।
क्या हुआ जो कुछ खो गया, या मिल नही पाता हैं,
जो मिला हैं, वो भी तो बहुत हैं, फिर बेवजह आँसू व्यर्थ बहाना क्या।
हैं गम माना बहुत से जीवन मे , पर सुख भी तो कितने सारे हैं,
सुख को भुला कर गम के पीछे व्यर्थ मे समय गवाना क्या।
काली घनी बदरी छटती हैं, फिर ही सूरज दिख पाता हैं,
जीवन की इन बदरी जैसी परेशानियों से घबराना क्या।
हे पतझड अभी यह माना, पर सावन भी आयेगा,
आना जाना चलता रहता हैं, जो आया वो जायेगा।
इसी के संसार के सच से आँखे चुराना क्या,
सुख जायेंगे, गम आयेगा।
गम जायेंगे, सुख आयेगा।
व्यर्थ कि बातों मे पढ़कर , जीवन को ठुकराना क्या।
आज को जिलो खुलकर यारों,
कल कि फिक्र मे आज को भुलाना क्या।
कौन जाने कल कैसा हैं, बहुत ही अच्छा या बहुत बुरा हैं,
क्युं कल की चिन्ता मे, आज की खुशी गवाना क्या।
जीवन मिला हैं, तो खुलकर जीना,
अन्त समय पछताना क्या।
सबका सब यही का हैं, यही छोड़ के जाना हैं,
क्यु व्यर्थ का संग्रह करके मस्तिष्क को दर्द पहुचाना क्या।
ना मैं जीता , ना तू हारा,ना कोई हैं, दुश्मन हमारा।
एक जात हैं, एक ही समाज हैं, एक पंथ, एक ही धर्म हैं।
इंसानियत की पूजा मे ही , ईश्वर का वरदान हैं।
यही सत्य हैं, फिर सोच-विचार करने मे,
अपना मूल्य घटाना क्या।
जो होना हैं , हो जायेगा,
बेवजह युहिं डर डर कर , सपनो को दफनाना क्या।
एक प्रश्न फिर रह जायेगा,
संघर्षो मे जो बीत गया ,क्या वही जीन्दगी थी
या जो हमने खुलकर जी, क्या वो जीवन थी,
अगर यही सब कुछ जिन्दगी हैं,
तो आखिर मे हैं, जीवन क्या....?????
आयुष पंचोली
©ayush_tanharaahi
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