कभी अपनी बनाई हदों से गुजर कर तो देखो।
अपने लिये तो बहुत जियें, कभी औरों के लिये जीकर तो देखो।
बहुत जी लिये समाज की बनाई गुलामी की जन्जीरे पहने।
कभी आजादी की चंद सांसे लेकर तो देखो।
पँछी उडते और नदियाँ बहती हुई ही खूबसुरत होती हैं।
कभी अपने बहाव और उड़ान की पहुँच तो देखो।
असम्भव नही हैं कुछ भी जहाँ मे,
उम्मिद का एक चिराग रोशन कर के तो देखो।
मन्जिल खुद झुककर इस्तकबाल करेगी तुम्हारा।
अपनी मन्जिल की तरफ दिल से सफर करके तो देखो।
आयुष पंचोली
©ayush_tanharaahi
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