क्युं ना इस दिवाली उम्मीद, प्रेम, भाईचारे, साहस और सम्मान के पाँच दिये जरा औरों के लिये भी लगाये,
क्युं ना कुछ ऐसा करे यह दिवाली जिनके परिवार नही हैं, उनके साथ ही मनाये।
कुछ खुशियाँ उन्हे भी दे,
कुछ उनसे दुआएं हम भी ले आये।
इन्तजार तकती हैं वो आँखे भी ,
कोई अपना आये जो हमारे साथ भी कभी त्योहार मनाये।
क्युं ना इस दिवाली अपनो की जगह,
अपनो की तलाश करने वालों के सपने पुरे किये जाये।
क्या पता जिन्दगी कब कौनसा मोड़ ले,
उनकी उम्मीदों के दामन को शायद हमारा ही प्रेम एक नया मोड़ दे।
भाईचारे की एक नई उड़ान भरी जाये,
कुछ साहस और सम्मान उन्हे भी दे दिया जायें।
क्युं ना यह दिवाली कुछ ऐसा किया जाये,
की हमारी वजह से ही कोई कुछ पल खुशी के जी जाये।
गर हो मुमकिन तो क्यों ना यह दिवाली,
किसी अनाथालय,किसी वृद्धाश्रम मे कुछ अपनो के त्यागें हुए,
अपनो का इन्तजार करती चंद गुम हो चुकी मुस्कुराहटो के साथ मनाई जाये।
क्युं ना इस दिवाली उम्मीद, प्रेम, भाईचारे, साहस और सम्मान के पाँच दिये जरा औरों के लिये भी लगाये,
क्युं ना कुछ ऐसा करे यह दिवाली जिनके परिवार नही हैं, उनके साथ ही मनाये।
आयुष पंचोली
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