आपसे आपकी जिन्दगी मे जुड़ने वाला हर एक शक्स और हर एक रिश्ता,किसी ना किसी स्वार्थ के कारण ही आपसे जुडता हैं। जब तक स्वार्थ रहेगा रिश्ते मे सम्मान और अपना पन भी दिखेगा। जिस दिन स्वार्थ सिद्ध हो जाता हैं, उस दिन रिश्ते से सम्मान और अपनापन भी गायब हो जाता हैं। यह जीवन का एक कडवा सत्य हैं, और मनुष्य के चारित्र का एक सबसे घिनोना रूप भी। मनुष्य हर इन्सान, हर चीज हर रिश्ते और यहां तक की ईश्वर को भी अपने स्वार्थ के लिये ही अपनाता और पूजता हैं। इस जहाँ मे माता-पिता का अपनी संतान से एक मात्र रिश्ता होता हैं , जहां एक स्वार्थ हैं वो हैं उनके तर्पण का , वरन यह एक मात्र रिश्ता हैं जिसमे कोई स्वार्थ नही होता, माता-पिता का अपनी सन्तान से।
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आयुष पंचोली
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