दिल शीशे सा ही सही ,
मगर धड़कना जानता हैं।
शीशा टूट कर बिखर जायेगा,
पत्थर की चोंट से, मानते हैं हम।
पर शीशा चुभना भी जानता हैं।
पत्थर थामने वाले हाथो को,
भी खून के आँसू रुलाना जानता हैं।
कहते सुना हैं लोगों को,
शीशा साफ़ होता हैं,
सच को बयां करना बखुबी जानता हैं।
सच की आँच मे जो तप्ता हैं,
वही शीशे सा होना जानता हैं।
दिल दुखाने वाले तो बहुत हैं, जमाने मे,
मगर जो दर्द सहना जानता हैं,
वो घाव पर मरहम लगाना ही नही,
घाव देना भी जानता हैं।
आयुष पंचोली
©ayush_tanharaahi
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