प्रजातांत्रिक लोकतन्त्र का आया त्यौहार सुनहरा हैं,
देश मे मेरे बढ गया रैलियों का अब जखेरा हैं।
जनता का करोड़ो रुपया फुकेंगे अपने प्रचारो पर,
निकल पडेंगे सारे खटमल जनता को मूर्ख बनाने पर।
कुछ महिनो मे करोड़ो लोग, अपने मत से चुनेंगे कुछ हज़ार लोगो को,
गढ़ने को नई किस्मत , देने को नई दिशा मेरे भारत की सूरत को।
जानते हैं, कुछ नही होना हैं,
हर बार की तरह इस बार भी हमारे मत का दुरुपयोग ही होना हैं।
हम कहाँ कभी एक हो पाये हैं,
जो देश को एक दिशा मे लेजा पायेंगे।
मत भी हमारे बटेंगे,
जात-पात, धर्म-मजहब, मन्दिर-मस्जिद के नाम पर।
इसी तरह से देश भी बंटता जायेगा,
मतों के आधार पर।
सोच हमारी सही नही हैं,
देश को कैसे सँवारेंगे।
जब तक हम खुद बंटे हैं,
कैसे भारत को एक साँचे मे ढालेंगे।
सोच मे भारतीयता ना हो तो मतदान किस काम का,
जात और धर्म के नाम पर ही चुनना हो अपना प्रतिनिधि तो प्रजातांत्रिक लोकतंत्र किस काम का।
कैसी अजीब विडम्बना देखो मेरा देश हैं झेल रहा,
ज्ञान और बलिदानो की भुमि होकर भी, अपने आस्तीन के सांपो का दंश हैं झेल रहा।
अब भी वक्त हैं, गर सुधर गए हम,
तो एक नया आगाज़ हो जायेगा।
सच मे अगर हर भारतवासी मे भारतीयता जाग उठती हैं अब तो,
नया हिन्दुस्तान खड़ा हो जायेगा।
आरक्षण, भुखमरी, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, नारी सम्मान के मुद्दो पर लड़ने वाले गर,
एक रास्ट्र, एक जात , एक ही नागरीकता की बात करे तो असल मायनो मे यह लोकतंत्र बन जायेगा।
फिर ना ही यह मुद्दे होंगे, ना ही कोई गुलाम,
असल मायनो मे देगा मेरा भारत उस दिन आजादी का पैगाम।
आयुष पंचोली
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