अजीब सा गुमान पाल रखा हैं हमने दोस्तो,
की लेखक के सिर्फ़ शब्दोँ को ही पड़ा जाता हैं,
रचना से उसके भावो का मंथन किया जाता हैं।
जितनी जल्दी यह भ्रम टूट जायेगा ,
उतने ज्यादा भावो को यह दिल शब्दो का रूप दे पायेगा।
आज के दौर की असलियत कुछ और हैं,
आज लिखे से ज्यादा प्रचार और दिखावे का शौर हैं।
चापलूसी करने वालों का चहुँ और महिमामंडन होता हैं,
देखो यारो किस तरह आजकल ज्ञान का खंडन होता हैं।
आयुष पंचोली
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