आशाओं की अभिव्यक्ति को वर्णन कैसे कर पाऊँगा,
गर मैं खुद हार गया तो, अपनो को क्या सिखलाऊँगा।
मैं खुद ही का पोषक भी हूँ, मैं ही स्वयं का शोषक हूँ,
अपना मान ना बचा पाया तो सम्मान कहाँ से पाऊँगा।
जीता हूँ मैं तिमीर मिटा कर, जुगनू सा जलता जाता हूँ,
अंधियारी इस दुनिया मे मैं खुद का अक्स खोजने को।
मैं खुद को लिखता जाता हूँ, खुद को ही तो मथने को,
एक अन्त को भुला के फिरसे नया आरंभ कुछ करने को।
पथ की कठिनाई ना जानी, फिर भी चलता जाता हूँ,
पथरिली इस कठिन डगर पर आगे बड़ता जाता हूँ।
मैं खुद का विश्वास हूँ, कैसे खुद से हार मैं जाऊंगा,
मैं इतिहास बनाने आया, इतिहास बनाकर जाऊंगा।
साथ मेरे कोई हो ना हो, मैं कर्म मेरा कर जाऊंगा,
बस कुछ दिन बीत जाने दो यारो याद मैं हर पल आऊंगा।
मुझको कोई क्या लूटेगा, मुझसे कोई क्या छिनेगा,
मैं अपना सबकुछ मात्रभूमि पर न्योछावर कर बैठा।
एक मात्र यह जान बची हैं, उसका भी मुझको मोह नही,
देश का मान ना झुकने पाये, मेरा तो कोई मौल नही।
एक कसम खाई हैं मैने ,मैं भगवा का मान नही झुकने दूंगा,
सर्व-धर्म सम्भाव को लेकर चलूंगा,
मगर मैं देश नही झुकने दूँगा।
आशाओं की अभिव्यक्ति को वर्णन कैसे कर पाऊँगा,
गर मैं खुद हार गया तो, अपनो को क्या सिखलाऊँगा।
आयुष पंचोली
©ayush_tanharaahi
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