जब इन्सान अपने सपनो से अपनो से अपनी उम्मिदो से दूर हो जाता हैं, तब वो जीता नही हैं , वो सिर्फ सांसें ले रहा होता हैं। उसके मन एक अँतहिन समाधि की अवस्था मे चला जाता हैं, जहां उसे किसी प्रकार के भावो से कोई फर्क नही पड़ता। वह बस सांसें लेता हैं , और छोड़ता हैं । उसे रिश्तों से, समाज से , समाज के बनाये नीयमो से कोई सरोकार नही होता।
इसलिये अगर जिन्दगी को जीना चाहते हो तो, उम्मीदो का दामन और सपने देखना कभी मत छोड़ना। वरना जिन्दगी जीना एक सजा हो जायेगा।
आयुष पंचोली
©ayush_tanharaahi
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