मनुष्य की सोच से ज्यादा गिरने वाली दुसरी कोई और चीज ईश्वर ने नही बनाई। क्या नीयत क्या सोच प्रदान करी हैं, ईश्वर ने मनुष्य को।
वह खुद लाख बुरा हो मगर दुसरे की तारीफ सुन नही सकता।
खुद भले ही कुछ ना करे मगर दुसरे को अपने से आगे बड़ता देख नही सकता।
दुनिया भले ही राख के ढेर पर हो, मगर कभी उसका बुरा नही होना चाहिये।
दुसरे की माँ और बहन भले ही खुद की माँ और बहन ना समझे, पर दुसरे सभी लोग उसकी माँ और बहन को अपनी माँ और बहन तुल्य समझे।
किसी मे बुराई मनुष्य बड़े ही सहज रूप मे ढूंढ़ लेता हैं, मगर कोई उसे कुछ बुरा कहदे तो, बड़ी सभ्य भाषा का प्रयोग किया जाता हैं उसके लिये। जिसे गाली कहते हैं।
खुद रोज लाखो गुनाह करता फिरता हो, मगर उसकी जान पहचान वाला कोई एक मच्छर भी मार दे तो उसे हत्यारा घोषित कर देता हैं।
खुद की नीयत के तो कोई ठिकाने नही हैं, और दूसरो को गिराने मे लगा रहता हैं, सच को झूठ साबित करते हुए।
और सबसे बड़ा काम जो मनुष्य करता हैं, ईश्वर को भुला खुद ही ईश्वर बन बैठता हैं।
अब ईश्वर खुद सोच मे हैं, मैने क्या बना दिया ये, यह तो खुद अपने आप मे सबकुछ बना बैठा हैं। एक ही प्रजाति मे इतनी खूबियाँ हैं, वह मनुष्य तो हैं ही, कभी इन्सान भी बन जाता हैं, राक्षस की प्रवृत्ति भी उसी मे हैं, और जानवरो का बर्ताव भी, और तो और वह खुद ही ईश्वर भी बन बैठा हैं। अब यह मेरी सबसे उत्कृष्ट रचना हैं या सबसे बड़ी भूल।😉
आयुष पंचोली
©ayush_tanharaahi
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