जब भी देखता था उसको,
उसके रुखसार पर झुल्फो का चिलमन सजा रहता था।
हल्की सी हवा चलती,
और उस चिलमन के पीछे से मुझे निहारती,
वह झील सी गहरी आँखे मचल जाती थी।
फिर धीरे से जब वो देखती थी अपनी सुर्ख आँखो से हमे,
हम सबकुछ भूल जाते थे।
उफ्फ्फ़ क्या अदा थी वो कातिलाना उसकी,
पर किसे मालुम था, अदायें ही नही वह भी कातिल ही हैं।
कत्ल करना शौक हैं उसका,
जज्बातों का।
एहसासो का।
भरोसे का।
मोहब्बत का.........!!!!!
अदाये उसकी बड़ी कातिलाना निकली,
नजरो से वार किया, सीधे दिल से मेरे आह निकली।
अब क्या रुसवा करू मैं, किरदार मेरे कातिल का,
मेरी मोहब्बत ही मेरी, रुखसती की वजह निकली।
आयुष पंचोली
©ayush_tanharaahi
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