Tuesday, 6 November 2018

यह जिन्दगी हैं, जनाब, हर किसी की सस्ते मे ही कटी हैं।

जिन्हे गुरूर था, अपनी बादशाहत का,
उनकी भी बहुत सस्ते मे कटी हैं।
यह जिन्दगी हैं, जनाब,
हर किसी की सस्ते मे ही कटी हैं।

आँखो से हर पल पानी जो बहाया हैं,
क्या साबित करना चाहते हो,
सिर्फ तुम्हारी ही दर्द मे कटी हैं।

चलो आओ पूछते हैं चलकर,
जगह जगह दफन मुर्दो की मजारो से,
कौन हैं यहाँ जिसकी मजे मे कटी हैं।

राजा भी हुएँ हैं खाँक,
अपनो के षडयंत्रो के आगे।
रंक की भी सिर्फ मेहनत मे कटी हैं,
यह जिंदगी हैं, जनाब सिर्फ रास्तों मे कटी हैं।

सबको जीना सिखाने का ,
कार्य करती आई हैं।
लोगो के चरित्रो पर से यह,
पर्दा गिराती आई हैं।

किसी की अपनो के बीच,
तो किसी की सपनो की तलाश मे कटी हैं।
यह जिन्दगी हैं , जनाब,
बस दौड़ भाग मे कटी हैं।

किसकी की सगी नही हुई यह,
सबकी इससे शिकायत रही हैं।
किसी को उम्मीदों से तो,
किसी को दुसरे के सुखो से परेशानी रही हैं।

कौन हैं यहाँ जिसने झाँका हैं,
खुद के अन्दर भी कभी।
यहाँ तो बस हर किसी को दूसरों की,
खामियों से ही सरोकार रहा हैं।

किसी को बदनाम करना ही,
यहां लोगो का कारोबार रहा हैं।
तू सच मे बहुत अच्छी हैं जिन्दगी,
जो सबकी ही अच्छे-बुरे दौर मे कटी हैं।

क्य खूब हैं किसी की आस तो,
किसी की परिश्रम मे जलती आग मे कटी हैं।
जिन्दगी हैं जनाब हर किसी की,
मंजिलो की तलाश मे,
रास्तो मे कटी हैं।

आयुष पंचोली
©ayush_tanharaahi

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