टूट कर बिखर गया था मैं,
आज फिर अपना अस्तित्व मैने पाया हैं।
मत पूँछ बेवफा खुद को वापस पाने के लिये,
कितना खुद को तडपाया हैं।
कितने सपनो की मजारों को दिल मे दफन कर,
दिल मे ही एक कब्रिस्तान बनाया हैं।
कितना रोया हूँ मैं,
ना जाने कितने अपनो को खोया हूं मैं।
आज मैने खुद को पा तो लिया हैं,
पर सबसे जहाँ मे सबसे ज्यादा अपने आप को अकेला कर लिया हैं।
अब इस जहाँ से, इसके बनाये समाज से,
उस समाज के रिश्तो से, कुछ बेबुनियादी नियमो से,
खुद को आजाद कर लिया हैं।
अब एक वादा मैने खुद से भी कर लिया हैं।
जिन्दगी मे अब कभी किसी शक्स पर अब ऐतबार ना होगा,
चाहे बीत जाये यह जीवन तन्हा ही राहों मे इस तन्हाराही को अब कभी किसी से प्यार ना होगा।
आयुष पंचोली
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