Tuesday, 23 October 2018

कुछ ऐसे ही

मेरा जीवन पतझड सा था, तुम बसन्त ऋतु की तरह आयी,

और कुछ समय ही बसन्त की तरह रही भी।

वो कुछ समय जो तुम मेरे जीवन मे रहीं,

वो समय पता नही सच था , या कोई सपना था,

पर जो भी था, तुमसे था।

अब रही बात वो समय कैसा रहा, तो जब बसन्त आती हैं तो समय कैसा रह्ता हैं, वेसा ही रहा।

पर जब तुम गयी ना तो तुम अपने साथ साथ मेर पतझड भी ले गई,

अब मैं , मैं रहा ही नही।

लोगो से सुना हैं मैने, की मैं बदल गया हूं,

और शायद मुझे लगता हैं, की मैं बदल गया हूं।

देखो ना तुमने मुझे ही बदल दियाँ,

बडी जादुगर निकली यार तुम तो।

कब आयी, कब गयी, और कब मुझे बदल गई

मुझे कुछ भी पता ही नही चला।

आज जब देखता हूं, तो एहसास होता हैं

अब कुछ भी पुराना नही रहा, कुछ पहले सा नही हैं

सब बदल चुका हैं।

मैं, तुम ,वो हम, ये मौसम सबकुछ,

जो कुछ नही बदला ,पता हैं वो क्या हैं

वो वहीं प्यार हैं, जो मैने तुमसे कियाँ।

कम्बखत समय के साथ साथ बडता ही जा रहा हैं,

जब मैं ,मैं नही रहा। तुम भी बदल गई फिर ये क्युं नही खत्म होता,

क्युं बडता जा रहा हैं।

देखो ना कैसा जादु करके गयी हो तुम................
©ayush_tanharaahi

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