Wednesday, 24 October 2018

फर्क नहीं पड़ता

फर्क नही पड़ता (1)

बहुत जी लिया ज़िन्दगी मे तेरे बगैर,अब तु आ भी जाये तो फर्क नही पड़ता।

तेरे धोको ने इतना तन्हा किया मुझे, अब महफिलों मे भी तु नजर आ जायें तो फर्क नही पड़ता।

वो वफां की बातें भुला ही दो अब तुम, अब जमाना भी बेवफा हो जायें तो फर्क नही पड़ता।

खुद को खोकर जीना सीखा हैं मैने, अब सबकुछ खो भी जायें तो फर्क नही पड़ता।

कुछ पाने की ख्वाईश तो कब की खो चुकी, अब कुछ ख्वाईशे मुकम्मल हो भी जायें तो फर्क नही पड़ता।

तेरी बेवफाई ने इतना पत्थर दिल इतना बेखौफ़ बना दिया हैं मुझे, की अब मौत भी आ जायें तो मुझे फर्क नही पड़ता।

आयुष पंचोली
©ayush_tanharaahi
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फर्क नही पड़ता (2)

वो दौर बीत गया जब तेरी आशिकी ही हमारे जीने का सहारा थी,
अब सहारो से ज्यादा खुद पर ऐतबार करते हैं,
ऐसा नही हैं की तुझसे अब प्यार नही रहा,
प्यार तो तुझे अब भी बेशुमार करते हैं,
पर तेरे जाने के बाद इतना मजबूत किया हैं खुद को,
की अब चाहे कोई सहारा मिलें या ना मिले,
कोई अपना साथ हो ना हो, कोई सपना भी टूट जायें,
तो कुछ फर्क नही पड़ता।
अब ना जीने की तम्मना हैं, ना मरने का कोई इरादा,
ना साथ हैं किसी का, ना विश्वास किसी का,
अकेला चल रहा हूं पथरिले सफर मे,
ना भूख ,ना प्यास ,ना ही बची कोई आस,
पर अब मुझे फर्क नही पड़ता।
तेरी बेरुखी ने , जिन्दगी का रुख ही मौड़ दिया,
अब कोई बिछड़ भी जायें तो मुझे फर्क नही पड़ता।

आयुष पंचोली
©ayush_tanharaahi
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फर्क नही पड़ता (3)

एक वक़्त था, जब तेरे आँसुओ को देख दिल मेरा भी रो देता था,

ऐसा नही हैं की, अब तेरी कोई फिक्र नही रही,

आज भी यह दिल तेरी ही खुशी चाहता हैं।

पर अब तेरे हंसने , तेरे रोने से , तेरे होने या ना होने से,

मुझे कोई फर्क नही पड़ता।

मैं खुद ही खुद मे खो जाता हूं ऐसे,

अब इस रंग बदलती दुनिया में,

कोई कितना भी बदल जाये , फर्क नही पड़ता।

आयुष पंचोली
©ayush_tanharaahi
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फर्क नही पड़ता (4)

तेरी झुटी मोहब्बत मे कुछ इस तरह टूटकर बिखरा हूं मैं,
की अब तु खुदा भी बन जाये तो मुझे फर्क नही पड़ता।

मेरी सच्ची मोहब्बत के बाद भी गर तु मेरी ना हो संँकी,
अब तु हजारों की भी हो जायें तो फर्क नही पड़ता।

तेरे आने से पहले , तेरे जाने के बाद , इस बीच का वो किस्सा गर मिट भी जायें तो क्या,
झूठे वादों और सपनो से अब कोई फर्क नही पड़ता।

तु हसीन नही, एक हसीं तु ख्वाब था, गर ये ख्वाब हकिकत
भी हो जायें तो अब फर्क नही पड़ता।

तुझे भुला नही हूं मैं, ना ही वो प्यार हुआ हैं कम,
पर अब तेरे होने ना होने से फर्क नही पड़ता।

कुछ इस तरह बिखरा हूं मैं, तेरी बेवफाई मे,
अब अगर ये जिन्दगी भी बेवफा हो जायें तो फर्क नही पड़ता।

आयुष पंचोली
©ayush_tanharaahi
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फर्क नहीं पड़ता (5)

कोई जिन्दगी मे आता हो तो आ जायें, कोई जाता हो तो चले जाये,
तेरे जाने के बाद लोगो के आने जाने से अब कोई फर्क नही पड़ता।

कोई मुझे बुरा समझता हैं, किसी की नजरों मे मैं अच्छा भी हूं,
जिसे जो समझना हे समझे,इस अच्छाई और बुराई की परिभाषा से अब फर्क नही पड़ता ।

बहुत हसने के बाद जब कोई उदास हो जाता हैं, उस उदासी से गुजरी हैं जिन्दगी बड़ी बेपरवाह होके,
अब कोई कितना भी लापरवाह क्युं ना हो जायें , मुझे फर्क नही पड़ता।

सब कहते हैं , बदल गया हूं मैं, कभी किसी ने बदलने की वजह को समझना नही चाहा,
हम तो हम रहे नही, अब कोई कितना भी बदल जायें मुझे फर्क नही पड़ता।

बहुत कुछ खोकर, कुछ ऐसा पाया हैं मैने, आँखो मे छुपे राजोंं को पहचान जाता हूं,
अब कोई हँसते हंसते झुठ भी बोल जाये तो फर्क नही पड़ता।

तेरे ना होने का गम तो उम्र भर रहेगा जिन्दगी मे,
पर अब तेरे होने से भी कोई फर्क नही पड़ता।

आयुष पंचोली
©ayush_tanharaahi
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फर्क नही पड़ता (6)

आँसु सूख गये हैं आँखो से मेरी,सुर्ख लाल सी रहने लगी हैं यें,
पत्थर सा बन गया हूं मैं,सुखी बंजर भूमि सी हो गयी हैं जिन्दगी,
पर अब फर्क नही पड़ता।

कभी तेरी हँसी की खातिर सबकुछ कुर्बान कर देता था मैं,
तेरे आंसुओ की गिरते ही खुद को सजा दिया करता था मैं,
अब तेरी बातों, तेरे रूठ जाने से कोई फर्क नही पड़ता।

तेरी बेरुखी का कुछ ऐसा मन्जर भुगता हैं हमने,
की अब दुनिया का भी रुख बदल जायें तो फर्क नही पड़ता।

गुमसुम सा हो गया हूं मैं, हँसी,खुशी से दूर एक शव सा हो गया हूं मैं,
जख्म हुएं नासूर मेरे, एक गहरे खारे समन्दर सा हो गया हूं मैं,
लोग कुछ भी कहें अब फर्क नही पड़ता।

तु चले गया, मोहब्बत चले गयी,अब ये मोहब्बत दोबारा नही होगी,
अब तेरे बाद हर रिश्ता एक मजबूरी होगा, पर अब इन मजबूरियों से भी फर्क नही पड़ता।

लाखों की भीड़ मे भी तुझे पहचान लिया करता था मैं कभी,
अब इसी भीड मे मैं तन्हा होकर कहीं खो गया हूं,
ना अब तेरी तलाश हैं , ना ही खुद की,
अब कहीं हमेशा के लिये खो भी जाउँ तो फर्क नही पड़ता।

अब तेरे होने ना होने से ,तेरे हंसने या तेरे रोने से,
तुझको पाने या खोने से, कौई फर्क नही पड़ता।

आयुष पंचोली
©ayush_tanharaahi
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फर्क नही पड़ता (7)

मेरे जख्मों को कुरैद दिया तुने,मेरे आंसुओ से  तुझे कोई फर्क नही पड़ता। तो सुन तु अब इश्क मे फना भी हो जायें तो मुझे फर्क नही पड़ता।

मैं टूट रहा था, और मुस्कान थी तेरे चेहरे पर, तेरी उस मुस्कान को देख कर ही इरादा कर लिया था, मैं बिखर जाऊंगा अब, मगर अब तेरी किसी बातों से फर्क नही पड़ता।

तु लाख झुठ कह भी ले, तु मुकम्मल गर हो भी जायें , तेरी किसी अदा किसी बात से अब फर्क नही पड़ता।

वचन दिया था, वचन निभाया मैने। अब तु गर मिट भी जायें तो मुझे फर्क नही पड़ता।

खुद को बदनाम होता देख भी, बहुत करीं हैं तेरे नाम की हिफाजत,
अब तु सरेआम बदनाम भी हो जायें तो फर्क नही पड़ता।

मेरी तो जो होनी हैं ,हो जायेगी कहानी। तेरी कहानी मे कितने भी किरदार अब आ जायें , फर्क नही पड़ता।

आयुष पंचोली
©ayush_tanharaahi
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फर्क नही पड़ता (8)

तेरी उन झील सी गहरी आंखों मे डूब जाया करता था मैं, अब उन्हीं आंखों से नफरत सी हो गयी हैं, मुझे तेरी आंखों के राजों से अब फर्क नही पड़ता।

तेरी वो सरसों के खेत सी लहलहाती जुल्फें , जिनमे कभी उलझ सा जाया करता था मैं, अब इन जुल्फों के झड़ जाने से मुझे कोई फर्क नही पड़ता।

जिन्दगी मे तुम्हारा आना एक हादसा था, और अब जिन्दगी खुद हादसा हो गई हैं, अब ऐसे मतलबी हादसों से फर्क नही पड़ता।

कुछ ज्यादा ही कडवा हो गया हूं मैं, तेरी बेरुखी की कडवाहट को झेलते झेलते, अब कोई शहद का दरिया भी बन जायें तो मुझे फर्क नही पड़ता।

हम आईना थे, आईना ही रहें। टुटे और टूटकर बिखर गयें।  पत्थर सा बना लिया हैं अब खुदको, अब इस टूटने बिखरने से फर्क नही पड़ता।

तु मगरूर हैं, तुझमे अब भी मेरी चाहत का गुरूर हैं । अब ना वो चाहत रही, ना वो हसरत रही। अब तेरी चाहत , तेरी नफरत ,जो कि थी तुने कभी उस झुटी मोहब्बत ,से कोई फर्क नही पड़ता।

आयुष पंचोली
©ayush_tanharaahi
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फर्क नहीं पड़ता (9)

वो दौर बीत गया , जब आँसु तेरे मेरी आँखो से बहते थे,
अब तेरे दुख तेरे दर्द से कोई फर्क नही पड़ता।

मैने तेरे सपनो के लियें मेरे सपनो मेरे अपनो को खो दिया,
अब तेरी हकिकत से भी कोई फर्क नही पड़ता।

जो जिन्दगी सोची ना थी कभी, आज उसे जी रहा हूं मैं,
अब जिन्दगी के इम्तहानों की हार जीत से फर्क नही पड़ता।

मैने सच्चाई का दामन हैं जबसे थामा, बहुत सो की असलियत को हैं जाना,
अब कोई कितने ही नकाब ओढकर ही क्युं ना आ जायें, मुझे फर्क नही पड़ता।

दर्द से रिश्ता कहाँ जोड़ना चाहता था मैं, तुने ही कुछ तोहफ़े बेमिसाल दिये हैं,
अब कुछ देना कुछ देकर लेना, इस कारोबार से कोई फर्क नही पड़ता।

मोहब्बत को गर मोहब्बत से मोहब्बत सी मोहब्बत हो भी जायें,
सच कहता हूं उस मोहब्बत की कसम, अब मुझे कोई फर्क नही पड़ता।

आयुष पंचोली
©ayush_tanharaahi
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फर्क नही पड़ता (10)

पहली बारिश के बाद उठी मिट्टी की वो सोन्धी सी महक सी वो खुशबू तुम्हारी, जिसमे हम कभी खो जाया करते थे..अब ऐसी किसी खुशबू के एहसासों से फर्क नही पड़ता।

वो सावन की हरयाली सी आकर्षक छंटा तुम्हारी, ये छंटा गर अब सावन से पतझड़ हो भी जायें तो फर्क नही पड़ता।

तु पत्थर की मूरत बना रहा और मैं सरेआम लुटता रहा, गर ये पत्थर की मूरत अब खुदा भी हो जायें तो फर्क नही पड़ता।

तेरी रूह को अपनाना चाहता था मैं, तेरे जिस्म से मोहब्बत नहीं थी मुझे, यह जिस्म गर अब पूर्णिमा की रात्रि मे ताजमहल सा जगमगा भी जायें तो मुझे फर्क नही पड़ता।

मेरी जिन्दगी का अनकहा किस्सा हो तुम, मेरी रूह का एक टूटा सा हिस्सा हो तुम। अब तुम किसी और का नगमा गर बन भी जाओं तो मुझे फर्क नही पड़ता।

वो शामों को तेरी मुलाकातों का इन्तजार भी अब नही रहा, नफरत तो ना हुई मगर वो प्यार भी अब नही रहा।
तुझे भूलना तो आसान नही होगा, पर  तेरी यादों के एहसासों से भी अब कोई फर्क नही पड़ता।

आयुष पंचोली
©ayush_tanharaahi
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फर्क नहीं पड़ता (11)

लोग कहते हैं मुझे, आजकल तु मेरी बातें बहुत करता हैं जमाने मे,
पर सच कहुँ मुझे तुझसे कोई उम्मिद ना रही, अब तु मुझे बुरा कहें, या भला कहें, मुझे फर्क नही पड़ता।

बहुत मांगा था तुझे मैने मेरी दुआओं मे,उस खुदा से मांगी सारी मुरादों मे, अब उन मुरादो के धागे भी टूट से गये हैं, दुआओ के जलाये दीप भी अब बुझ से गये हैं। पर अब इन दुआओं से भी कोई फर्क नही पड़ता।

तु सावन की बदरी सा , मुझको भिगाने आया था। कुछ बुन्दो की बारिश से तुने क्या खेल रचाया था। मैं फिरसे पतझड हुआ,तु जाने कब खो गया। अब सावन के इन झुलों से कोई फर्क नही पड़ता।

जो ख़ुशी मिली, जो हसीं मिली, वो धीरे धीरे चलीं गयी। एक आस तेरे संग जीने की जाने क्युं काश मे बदल गयी। अब आस नही कोई रखता मैं, तेरी तस्वीर भी पास नही रखता मैं। अब इन उजड़ी बातो से, तेरी झूठी यादों से मुझको फर्क नही पड़ता।

गीत ,गजल,की समझ नही, मैं जज्बातों को लिखता हूं। जो कुछ मेरे साथ हुआ उन हालतों को लिखता हूं। हूं मैं पागल कहते हैं सब, कुछ हाल ही मेरा ऐसा हैं। पर लोगो की बातों से, अब कोई फर्क नही पड़ता।

ये कलम मेरी कुछ कहती हैं, तुमको बयां कर देती हैं। मैं चीखता मेरे शब्दों मे, कुछ एहसासों को कहता हूं। कोई देखे या ना देखे मुझको, मैं तो कहता रह्ता हुँ, कुछ हाल हमारा ऐसा हैं , पर कोई फर्क नही पड़ता।

हाँ अब मुझको इन बातों से अच्छे-बुरे एहसासों से कोई फर्क नही पड़ता।

आयुष पंचोली
©ayush_tanharaahi
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फर्क नहीं पड़ता (12)

मौत से लड़कर जीना सीखा हैं मैने,
पुरा जमाना भी खिलाफ हो जायें गर मेरे तो मुझे फर्क नही पड़ता।

सच्चाई का साथी हूं, सच के साथ ही खड़ा रहूंगा,
कोई कितना भी नाराज हो जायें मुझसे मुझे फर्क नही पड़ता।

सनातनी हूं, अपने धर्म और कर्म को बखुबी जानता हूं,
कोई मुझे कितना भी गलत ठहराये मुझे फर्क नही पड़ता।

लोगो की बातों को लोग ही जानते हैं, जो खुद के आगे उस ईश्वर को गलत बता दे ,
वो गर मुझे गलत कह भी दे तो क्या हैं,
जिनकी खुद कुछ औकात नही वो मुझे मेरी औकात पूछते हैं,
मैं जमाने की लगायी इन कालिखो पर मुस्कुरा देता हूं,
मलिन मन के लोग हैं यहां, समझ गया हूं मैं,
इनकी बातो से और उन बातों मे होती मेरी बातों से ,
मुझे कोई फर्क नही पड़ता।

आयुष पंचोली
©ayush_tanharaahi
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फर्क नही पड़ता (13)

कुछ नाम हुआ, फिर बदनाम हुएँ,
किस्से कुछ ऐसे थे जो सरेआम हुएँ,
हम समझे थे इश्क जिसको,
वो किस्सा ही दिल का कत्ल-ए-आम हुआ।
कुछ टूटे हम, फिर बिखर गयें,
तलाश मे खुद की ही खुद मे उलझ गयें।
गले लगाना चाहा था, जिसे अपना समझकर,
उसी इन्सान ने मौत से आंखे चार करादी हमारी।
फिर होश आया तो पाया तन्हा खुद को,
जमाने की इस भीड मे।
समय लगा पर संभल गयें,
हम भी अब जमाने के उसूलों को समझ गयें।
अब किसी की बातों से कोई फर्क नही पड़ता,
अब बस जीना हैं, जब तक सांसें हैं,
अब मुझे जमाने से फर्क नही पड़ता।

आयुष पंचोली
©ayush_tanharaahi
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