Thursday, 18 October 2018

कुछ ऐसे ही

"कोई जी रहा हैं, तुझसे जुदा होकर भी,
पर ना जाने क्यु अब उसे जिन्दगी अजनबी सी लगती हैं।
वही दिन हैं, वही रातें हैं,
पर ना जाने क्यु अब सारी महफिल अजनबी सी लगती हैं।
ना तुम होती हो वहाँ, ना तुम्हारी बातें,
ना मैं होता हूं वहाँ, ना मेरी मुस्कुराहटें।
होती हैं बस वही तन्हा यादें,
और उन्ही यादों को समेट्ता एक तन्हा सा,एक टूटा सा इन्सान।
जो आज भी किसी की यादों के सहारे जियां जा रहा हैं।
जानता हैं अब उसे कभी पा नही सकता,
पर फ़िर भी रब से उसकी खुशियों की दुआ किये जा रहा हैं।
यह वही इन्सान हैं जिसे कभी तुमने ठुकराया था,
पर यह हैं की आज भी तुम्हारे लिये सबकुछ सहे जा रहा हैं।
यकिन नही होता कोई इतना भी बिखर सकता हैं,
हर पल वो खुद को समेटे जा रहा हैं।
कोई जी रहा हैं , तुझसे जुदा होकर भी,पर खुद ही खुद पे कहर ढाह रहा है, हाँ वो मोहब्बत करने की सज़ा पा रहा हैं।"

©ayush_tanharaahi

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