Thursday, 18 October 2018

बलात्कार

बलात्कार ..... यह शब्द सुनने मे ही कितना भयानक है, तो सोचो जिसके साथ यह घिनोना कृत्य हुआ होगा उसकी ओर उसके परिवार की पीडा को कौन समझ सकता हैं। कुछ सालो पहले एक ओर ऐसा ही वाकया हुआ था, जिसे निर्भया काण्ड नाम दिया गया था। और जो अब हुआ हैं उसे असिफा काण्ड नाम दे दिया जायेगा। तब मे और आज मे फर्क क्या है तब भी किसी के घर की लक्ष्मी हैवनो का शिकार हुई और आज भी वही हुआ। इतने समय मे अगर कुछ बदला हैं तो वो है सिर्फ सरकार। वेसे इसमे दोश सरकार का नही हैं , दोष है हमारा । हम सभी का जो भी इस वहशी समाज के हिस्से हैं। ऐसा नही हैं , हमारे देश मे अभी तक यह दो ही कृत्य घिनोने हुए , कितने ही ऐसे कृत्य हुए हैं, इन्हे सुर्खियां मिली तो हमे एहसास हुआ कि कुछ गलत हुआ हैं। पर ऐसी ही कितनी बच्चियाँ, कितनी ही महिलायें,कितनी ही बहने इन्सान की हवस का शिकार हो चुकी हैं। कुछ मार दी जाती हैं, कुछ समाज के डर से सच बोलने की हिम्मत नही कर पाती और जो हिम्मत करती हैं उन्हे ये समाज ही लाज और मर्यादा का ताना देकर बिठा देता हैं। आखिर कब तक ऐसा चलता रहेगा, हम कब समझेंगे की अब हमे बदलना होगा। हमे लड़ना होगा, विरोध करना होगा। मोमबत्ती जलाने से या कुछ समय के लिये अपनी DP बदल लेने से कुछ नही होगा। अगर कुछ करना ही है , तो अपनी नीयत अपने विचारो को बदलो। फिर आगे की लडाई लड़ना। पहले खुद की सोच को देखो, कब आपने किसी महिला के खिलाफ हो रहे अत्याचार का विरोध किया, आपने तो साथ ही दिया हैं , महिलाओ के प्रति घ्रणीत सोच रखने वालों का किसी णा किसी रूप मे। स्कूल , कॉलेज के केंटिन मे। किसी पब्लिक प्लेस की टिकट की लाईन मे। ट्राफिक के सिग्नल के यहां। कोचिंग क्लास के बहार। किसी चौराहे पर। और भी कई जगह हैं जहाँ हर रोज कितनी ही महिलाये हमारी घृणीत सोच और गंदी निगाहो का शिकार होती हैं। बलात्कार करने वाले ने उसके दो कदम आगे का रास्ता अपना लिया, पर उसकी शुरुवात तो उसी मानसिकता से हुई जो हमारे आस पास हैं। हम सब मे हैं। कोई अछुता नही है इससे।
©ayush_tanharaahiफिर किस चीज का धिकावा कार रहे है हम लोग चन्द लोगों का विरोध करके। अगर गलत वो हैं तो आप भी गलत ही हैं, क्युकी आपकी सोच से ही उन्हे ये सब करने का बड़ावा मीला। विरोध करना ही हैं तो सबसे पहले उस सोच का करो जो महिलाओ को सिर्फ भोग की वस्तु ही मानती हैं। फिर कुछ और करने की सोचना। जिस दिन आपकी सोच बदल गयी ना , उस दिन सोचना कि हाँ मे विरोध कर सकता हुँ। जिस दिन समाज ने महिलाओं को सिर्फ भोग की वस्तु से ऊपर उठके देखना शुरु कर दिया ना उस दिन सब बदल जायेगा असल मायनो मे विरोध करना हैं तो उस सोच का करो। जो आपकी, आपके दोस्तो की, आपके समाज की हैं। अगर कोई किसी महिला के बारे मे कुछ बोले तो उसे वही रोको और समझाओ की उसकी सोच कितनी दूषित हैं, और उसका परिणाम क्या हो सकता हैं। बदलाव आयेगा, पर शुरुवात हमे अपने आप से करना पड़ेगी। विरोध करना अच्छा हैं, पर भेड़ चाल चलना अच्छा नही होता। हम खुद नही बदलना चाहते पर हमे सबको बदलना हैं, यह एक कडवा सत्य हैं। अपराधियों को सजा मिलना चाहिये, उस बच्ची को इन्साफ मिलना चाहिये। पर हम भी तो अपराधी ही है उसके। अगर हम और ये तथाकथित समाज शुरु से ही महिलाओँ के प्रति अपनी सोच को अपने विचारो को शुध्द रखते तो शायद आज ये नही होता। हम सबके अन्दर एक हैवान छुपा हुआ है, अगर ऐसा नही हैं तो फिर महिलायें कही भी क्यू सुरक्षित नही हैं। चाहे स्कूल हो या कॉलेज , घर हो या दुकान, ऑफ़िस हो या कौई मॉल , या फिर कोई तथाकथित किसी धर्म के ठेकेदार का आश्रम या निवास स्थान , है क्या कही कोई ऐसी जगह जहां महिलायें मह्फूज हैं। कौन है इसका कारण, सिर्फ और सिर्फ हम और हमारी घृणीत सोच और वो हैवान जो हमारे अन्दर हैं।अगर कुछ बदलना चाहते हो तो पहले खुद को और समाज की सोच को बदलो। फिर महिलायें अपने आप ही सुरक्षित हो जायेंगी। फिर कोई किसी स्त्री को आंख उठा कर देखने की हिम्मत भी नही करेगा। संविधान भी बदल जायेगा पर पहले खुद की सोच का विरोध करो उसे बदलो। मैं आसिफा के दर्द को नही समझ सकता ना ही निर्भया के दर्द को और भी ऐसी बहुत सी बेटियाँ , माँ और बहने है जिन्होने ये दर्द सहा हैं और उनके साथ उनके परिवार वालों ने जो सहा होगा हम और आप उसकी कल्पना भी नही कर सकते हैं। दोषियो को तो मृत्युदंड मिलना ही चाहिये। पर अब हमे अपने आप को बदलना पडेगा , अपनी सोच को बदलना पडेगा, की फिर कौई निर्भया या आसिफा हमारी सोच का शिकार ना हो। मैं बहुत छोटा हूं , ओर हो सकता हैं मेरे विचरों से बहुत कम लोग सहमत हो। पर यह हमारे समाज का कडवा सत्य हैं। आज भी समाज मे स्त्री को केवल भोग की वस्तु समझा जाता हैं। जिसे बदलना होगा। आपको , मुझे , हम सबको मिलकर, ताकी हम हमारी आने वाली पीडियो को वो सोच वो समाज दे सके जो इस प्रकार की गंदी सोच व मानसिकता का कतई समर्थक ना हो।

आयुष पंचोली
©ayush_tanharaahi
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