Sunday 6 January 2019

"चुनाव" राजनीति का अखाड़ा या जनता को मूर्ख बनाने का खेल

समझ नही पाया मैं कभी क्या हैं यह चुनाव का खेल,
जनता चुनती हैं नेता अपना या करती हैं,
अपने ही हाथों अपने भविष्य से खेल।

बहुत से नियम होते हैं चुनाव मे , मतदाताओं के लिये,
पर नेताओ के लिये कोई नीयम क्यो नही बनाया जाता।

कोई व्यक्ति हो जिसपर कौई भी आपराधिक प्रकरण,
वो कभी किसी सरकारी नौकरी का पात्र नही होता।
तो फ़िर क्यों यह नीयम राजनताओ के लिये मान्य नही होता।

बिना पढ़े लिखे पा नही सकता कोई भी व्यक्ति कोई पद सरकारी,
फ़िर ना जाने क्यो दे दी जाती हैं, अनपढ़ों के हाथों मे देश की जिम्मेदारी।

जब कोई मतदाता एक ही जगह अपने मत का प्रयोग एक चुनाव मे एक बार ही कर सकता हैं,
पर राजनेता कोई भी हो कितनी ही जगह से वो चुनाव लड़ सकता हैं।

एक सरकारी कर्मचारी लगभग 35 से 40 वर्ष तक सतत् कार्य करने के बाद सेवानिवृत्त हो पेन्सन प्राप्त करने का अधिकार पाता हैं,
फ़िर क्यो किसी राजनेता को 5 वर्षो के कार्यकाल के बाद ही यह अधिकार मिल जाता हैं।

काली-कमाई करके अपने राजनीतिक कार्यकाल मे एक राजनेता करोड़ो जमा कर लेता हैं,
फ़िर भी जीवन पर्यन्त क्यो उसे सरकारी सेवाओं का लाभ मिलता रहता हैं।

आजकल चुनाव मे एक नये प्रतिनिधि के रूप मे नोटा भी आ गया हैं,
पर सच तो यह हैं यह नोटा नही एक टोटा हैं जिसने भी आम जनता को ही छला हैं।

गर नोटा को देना हैं सही अधिकार तो करो घोषणा, गर समबन्धित विधान सभा कि मतदाताओं की जनसंख्या के गर 20 से 30 प्रतिशत मत भी नोटा को मिले तो सभी उम्मीदवार अघोषित कर पात्रता हीन करार कर दिये जायेंगे,
तब जाकर आम आदमी के लिये यह राजनेता जरुर कुछ कर पायेंगे।

कोई राजनेता आज ऐसा नही हैं जिसके उपर दर्ज कोई आपराधिक प्रकरण नही  हैं,
फ़िर संरक्षण दे रहा उसको वही जिसके उपर आपराधो के नियंत्रण की जिम्मेदारी दि गई हैं।

जब कानून एक हैं, संविधान के नीयम हर भारतीय के लिये एक हैं,
चाहे हो कोई आम आदमी या कोई महान आदमी, संविधान देता सबको अधिकार एक हैं।

फ़िर क्यो जनता को मूर्ख बनाया जाता हैं, हर बार आम आदमी की भावनाओ को छला जाता हैं,
बदलाव की बातें करने से होता क्या हैं, जब पुरा तंत्र ही भ्रष्टाचार मे लिप्त पढ़ा हैं।

आयुष पंचोली
©ayush_tanharaahi

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