एक सैनिक सरहद पर जाने के लिए अपनी माँ से विदाई लेते हुएँ।
शायद एक सैनिक की मनोदशा क्या होती हैं ,उस वक्त वह तो हम कभी नही समझ पायेंगे। फिर भी कुछ लिखने का प्रयास किया हैं, कुछ भुल और त्रुटि हुई हो तो क्षमा किजीयेगा।
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बहुत निभाया फर्ज तुम्हारा ,
अब माटी का कर्ज चुकाना हैं ।
दुध का कर्ज चुकाया मैने,
माँ अब माटी का फर्ज निभाना हैं।
चलो मैं चलता हूँ,
मेरी माता मुझे बुलाती हैं।
माँ तेरे आँचल मे सोया,
अब सरहद आवाज लगाती हैं।
मत आंखों मे अश्क तु ला यूँ,
सैनिक की तु माता हैं।
कौन क्या बिगडेगा मेरा जब,
आशीष दो माताओं का, मेरा भाग्य विधाता हैं।
मैं सीमा पर सीना ताने ,
तेरा मान बड़ाऊंगा।
वादा करता हूँ माँ तुझसे,
मैं मातृभुमि के सम्मान की खातिर हँसकर जान लुटाऊँगा।
माँ मेरी तु खुश हो ,
तेरे लाल को देश बुलाता हैं।
विरले ही होते हैं,
जिनको सरहद पास बुलाता हैं।
हम सैनिक हैं,
मातृभुमि का मान नही खोने देंगे।
आज भले ही शहीद हो जाये,
कल जन्म यही पर फिर लेंगे।
फ़िर माता कि रक्षा को हम,
आगे निकल कर आयेंगे।
जो निगाहे उठती हैं हरण को,
उनके भाल ही धड़ से उडाएंगे।
माँ मेरी यह गर्व का क्षण हैं,
जो आज तुम्हे मिल बैठा हैं।
तिलक लगा कर विदा करो माँ,
वहा दुश्मन हमसे अढ़कर बैठा हैं।
माँ मेरा वादा हैं तुमसे,
कुछ ऐसा मैं कर जाऊंगा।
या तो तिरंगा लहराऊँगा,
या उसमे लिपट कर आऊंगा।
गर्व से सीना चौड़ा करके,
शीश उठा कर चलना तुम।
सैनिक की माता हो,
कभी ना आंखे नम करना तुम।
आयुष पंचोली
©ayush_tanharaahi
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