एक कहानी के दो किरदार थे हम ,
एक मैं, और एक तुम।
पता ही नही चला कब कहानी "हम" से "मैं" और "तुम" मे बदल गई।
कैसे तुम्हारी सोच इतनी ज्यादा बदल गई।
तुम ही तो कहती थी ना, तुम सिर्फ मेरी हो,और मैं तुम्हारा,
और इस रिश्ते के बीच कोई और नही तुम्हे गंवारा।
फ़िर क्यों तुमने यह रिश्ता ही खत्म कर दिया,
मेरे हम से तुम्हारा तुम ही मुझसे जुदा कर दिया।
हमारे पास बचा ही क्या फिर जब हम से तुम जुदा हो गये ,
हम तुमसे जुदा होकर "मैं" से भी जुदा हो गये।
अब ना "हम" रहे, ना "तुम" , ना ही "मैं" , मैं रहा,
अब सिर्फ एक जिस्म हैं बेजान सा, जिसमे पलता हैं एक ख्वाब नादान सा।
वहीं हैं ख्वाब जो वापिस मैं से "मैं" को तलाश कर,
तुम से "तुम" को माँगकर , "हम" होने के सपने दिन-रात बुनता रहता हैं।
जानता हैं, मुमकिन नही इसके ख्वाबो का हकीकत हो पाना,
पर बना फिरता हैं, इश्क मे पागल यह दीवाना।
आयुष पंचोली
©ayush_tanharaahi
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"हम" कब बदल गये "हम" से ,
"मैं" और "तुम" मे।
"हम" से "तुम" जुदा क्या हुएँ,
"हम" "मैं" से भी खफ़ा हो गये।
जो सपने हमारे थे,
वो सबके सब फ़ना हो गये।
आयुष पंचोली
©ayush_tanharaahi
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