क्या थे, क्या से क्या होते जा रहे हैं,
हम अपनो से ही अन्जान होते जा रहे हैं।
अपने सपनो की तलाश करते करते,
उन सपनों के ही गुलाम होते जा रहे हैं।
खो चुके हैं अपने आप को, अपने अस्तित्व को,
हम दिखावो मे जियें जा रहे हैं।
वो क्या कहेगा, वो क्या सोचेगा,
बस उसे दिखाना हैं, खुद को औरो के लिये ही बदलते जा रहे हैं।
हम धीरे धीरे अपने आप को ही खोते जा रहे हैं।
माटी से बने हैं, और उस माटी से ही दूर होते जा रहे हैं।
हम क्या थे, हम क्या हो गये हैं, हम क्या से क्या होते जा रहे हैं,
हम इन्सान थे कभी, अब इंसानियत से ही दूर होते जा रहे हैं।
दुनिया को जितना चाहते हैं सब,
पर अपनों से अपने आप से ही दूर होते जा रहे हैं।
आयुष पंचोली
ayush_tanharaahi
#kuchaisehi #ayushpancholi #hindimerijaan
https://kuchaisehibyayush.wordpress.com
https://kuchaisehibyayush.blogspot.com/?m=1
https://sanatandharmbyayush.wordpress.com
https://sanatanspiritualpost.blogspot.com/?m=1
No comments:
Post a Comment