Thursday, 29 November 2018

इश्क

कुछ हर्फो मे बयाँ करना चाहते हो इश्क को,
बड़े ही नादान लगते हो,
या सिर्फ इश्क को पढ़कर आये हो।
अगर जीया होता इश्क तुमने कभी कहीं,तो समझ आता तुम्हे भी, इश्क शब्दों मे ना कभी बयाँ हो पाया हैं, और ना कभी बयां हो पायेगा।

कितने ही शायरों अपनी शायरी मे बयां किया हैं।
कितने कवियों ने अपनी कल्पनाओ को जवाँ किया हैं।
लिखे हैं कितने ही काव्य, कितने ही हर्फ़ इश्क पर।
कुछ ने गजलों और नज्मों मे भी इश्क बयाँ किया हैं।
पर कोई आज तक इश्क भेद जान ना पाया हैं।
कोई राधा-कृष्ण के पवित्र प्रेम को इश्क लिखता हैं।
किसी ने राम-सिता के वियोग को इश्क बताया हैं।
कोई ताजमहल को इश्क की निशानी मानता हैं।
कीसी ने हीर-रान्झे को ही इश्क बताया हैं।
कोई रूह का मिलन इश्क बताता हैं।
तो किसी ने जिस्मो के संबंद्ध से इश्क को दर्शाया हैं।
पर सच तो यही हैं, जहाँ दरश हो जाये ,
किसी को अपने अजीज मे अपने प्रभू का,
बस वही इश्क का वजूद समझ मे आया हैं।
सबने बयाँ करा हैं इश्क को अपने विचारों से।
जिसने जाना हैं, भक्ति को मीरा की,
और समझा हैं ,तपस्या को शबरी की ।
जिसने माना हैं ,त्याग सुदामा का,
और अनुभव किया हैं, दर्द केवट का।
जिसने समझा हैं  प्रकृती को,
और जाना हैं त्याग शिव का।
जिसने समझा हैं बलिदान माँ का,
और जाना हैं जिम्मेदारी को पिता की
बस उसी ने इश्क को जाना हैं,
वरना सबने सिर्फ बयाँ किया अपना अपना फसाना हैं।

आयुष पंचोली
©ayush_tanharaahi

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