खून से जिसको सिंचा अपने कुछ वतन परस्त मतवालों ने,
कैसे उस मिट्टी को दगा देने वालों के साथ खडा हो जाऊंगा।
नही भुला हूँ शहादत मैं मर्दानी झांसी की रानी की,
कैसे उनको दगा देने वाले नरेशों का गान मैं गाऊंगा।
भगत सिंह को शहीद ना माने वो कैसे हिन्दुस्तानी हैं,
कैसे उन जयचन्दो को मैं फूलों का हार पहनाउंगा।
विभिषण कितना भी राम भक्त हो,
पर देशद्रोही कहलाता हैं।
त्रैता, द्वापर, या कलयुग हो सत्ता का नशा,
अपनो को ही दगा दिलवाता हैं।
कैसे भाई भाई का दुश्मन,
सिंहासन के लिये हो जाता हैं।
जो अपनो का हुआ नही वो कैसे देश सम्भालेगा,
अपने मतलब के लिये अपनो को छलने वाला एक दिन देश को ही बेच डालेगा।
नही ईमान इतना सस्ता मेरा,
जो देशद्रोहियों के आगे झुक जायेगा।
मैं कलम की पूजा करता हूँ,
सच मेरा बिक ना पायेगा।
आयुष पंचोली
©ayush_tanharaahi
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