Sunday, 21 October 2018

मैं भारत हूँ....

मैं राजा दुष्यंत और शकुन्तला के प्रेम की मिसाल हूँ,
उनके पुत्र भरत के तेज और वीरता का बखान हूं।
उसी पुत्र के नाम से रोशन हुआ एक सम्मान हूं,
भरत के नाम से कहलाया भारत,
मै सत्य का पोषित ज्ञान हूँ।
मै सनातन , मैं अखंड था,
मैं सिन्धु सभ्यता का मान था।
जम्बूद्विप के उत्तर और हिमालय के दक्षिण मे बसा मे,
अखंड भारत देश महान था।

अब खंडित होकर भारत कहलाया,
मैं ही हूँ जो पुरा काल मे विश्वगुरु का नाम था।
मैं पुरातन, मैं श्रेष्ठ , मैं देवो और ऋषियों के ,
रहने लायक स्थान था।

मैने क्या कुछ नही हैं देखा,
कितने कालों को है , भोगा।
फिर भी अब तक देखो कैसे,
कितना सबकुछ खुद मे समेटा

मैं रामायण, मैं महाभारत,
मैं ग्रंथो और वेदो का ज्ञान हूँ।
मैं सनातन, मैं पुरातन,
मैं गीता का अभिमान हूँ।

मैं राम की मर्यादा हूँ,
मैं कृष्ण की मुरली की तान हूँ।
मैं सोने की चिड़िया कहलाता था,,
मैं दानीयो की पुण्य भूमि महान हूँ ।

मेरा इतिहास बहुत विस्तृत हैं,
कितने, कालो का भक्षक हैं।
मैने जन्मे देखो कितने,
मातृभूमि के रक्षक हैं।

मैं हरीशचंद्र की सत्यता की,
जीती जागती मिसाल हूँ।
मैं विक्रमादित्य के अदम्य साहस की,
एक गूढ़ परिभाषा हूँ।

मैं पोरस की वीरता हूँ,
मैं भीष्म की प्रतिज्ञा का वरदान हूँ।
मैं कर्म और युद्ध भूमि कि,
एक अनोखी मिसाल हूँ।

मैं मधुर राग गुन्जायमान ,
मैं सभ्यता का दानी हूँ।
मैं धरा हूँ निष्छलता की,
मैं ज्ञान,भक्ति और शक्ती का, एक अद्भूत संगम स्थान हूं।

मैं मौर्य वंश की शान हूँ,
मैं चाणक्य की प्रतिज्ञा का परिणाम हूँ।
मैं महाराणा प्रताप का शौर्य हूँ,
मैं शिवाजी की ललकार हूँ।

मैं परमहंस की भुमि हूँ,
मैं विवेकानंद का नाम हूँ।
मैं बुद्ध की अहिंसा हूँ,
मैं बोस की हिन्द फौज, महान हूँ।

मैं भगत सिंह की पुकार हूँ,
मैं आजाद की आजादी,
मैं बिस्मिल का इन्कलाब,
मैं तीन रंगो मे रंगा हुआ , वीरों का बलिदान हूँ।

मैं शहीदों और किसानों का,
एक कभी ना पुरा होने वाला कर्ज हूँ।
मैं अटल और कलाम जैसे ,
इंसानियत के पुजारियों का गर्व हूं।

मैं जात-पात मे बँट के रह रह गया,
राजनीती का मर्ज हूँ।
मैं टैगोर का भक्ति गीत ,
मैं ही जन-मन-गण हूं।

क्या कुछ मैने नही हैं देखा,
क्या कुछ मैने नही दिया हैं।
आज खड़ा हैं विश्व जहाँ पर,
सबकुछ मुझसे से छीना गया हैं।

ज्ञान भी मेरा, धन भी मेरा,
और हैं यह सम्मान भी मेरा।
मैं शिकार हूँ कुछ अपनो का,
कुछ अपनो के बैगैरत सपनो का।

फिर भी गर्व मैं करता खुदपर,
इतना अमर इतिहास हैं मेरा।
ना मुझसा था कोई , ना मुझसा कोई हो सकता,
मैं एक विस्तृत रहस्यों का स्थान हूँ,
मैं सिन्धु सभ्यता से जन्मा हिन्दुस्तान हूँ
मैं कर्म से खुदको गढने वाला,
भारत देश महान हूं।

हाँ मैं भारत हूँ................!!!!!

आयुष पंचोली
©ayush_tanharaahi

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