Tuesday, 23 October 2018

कुछ ऐसे ही

आज सालों बाद जब कुछ पुरानी किताबें खोली,
तो कुछ मिला उनमे।
कुछ ऐसी यादें, कुछ ऐसे लम्हें,
जो सिर्फ बातों मे ही सिमट कर खत्म नही हो जातें, बल्कि एक अलग जिन्दगी का एहसास कराते हैं।
हाँ वही कॉलेज के दिन , वहीं यादें,
जब हम सब यार साथ थे।
और एक आज का दिन हैं, सब वापस मिलना तो चाहते हैं, वही ज़िन्दगी दोबारा जीना चाहते हैं।
पर सब अपने आने वाले कल ( future) की तैयारी मे लगे हैं।
और आज को खों रहे हैं।
सब व्यस्त हैं,अपनी ज़िन्दगी की भागदौड़ मे,
खुश नही हैं कोई, पर खुश हैं जमाने को दिखाने को।
क्या करें यार इन्सान की खुशियां, उसकी अकेले की कहां होती हैं,
सब हिस्सा होते हैं उसकी खुशियों का।
मगर कोई उस इन्सान से नही पूछता भाई तू खुश हैं कि नही, असली वाला खुश ।
कैसे होगा वो खुद जानता हैं, खुशी तो उनसे ही थी , जो आज खुद मेरी तरह किसी और की खुशी के लिये जी रहें हैं।
खुशी तो वहीं थी , उस जमाने मे ,जब जैब मे कुछ भी नही होता था , तो भो हमारे ठाट राजाओं से कम ना थे। क्या कहें यार ही सारे राजा थे अपने तो दिलसे।  बाकी कभी कुछ सोचा ही नहीं। आज सब याद आ रहे हैं। पर सब कहीं ना कहीं एक झूठी दुनियां मे जी रहे हैं। फिर विचार भी आता हैं,
किस काम की ऐसी future planning. जो आपके present को ही आपसे दूर करदे।
चलो छोड़ो यार जिसे जैसा जीना हैं, जीने दो। अपन तो अपने आज मे जीयों, कल का कल देखेंगे, जब कल देखेंगे।
©ayush_tanharaahi

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