Tuesday, 23 October 2018

कुछ ऐसे ही

"एक बात कहुँ,
मुझे आज जरुरत हैं तुम्हारी,
हाँ जरुरत हैं, एक दोस्त की,
उस दोस्त की जिससे मे बिना डरे, बिना किसी झिजक के, बिना कुछ सोचे अपनी हर बात हर राज शेयर कर सकता था।
पता नही कहाँ खो गया हैं , वो दोस्त वो हमदम मेर।
आज भी बहुत कुछ कहना चाहता हुँ तुमसे,
उसी दोस्ती उसी अपने पन के साथ।
पर कैसे कहुँ , तुम तो नफरत करने लगे हो मुझसे।
तुमने तो कभी बुरा नही समझा था मुझे,
फिर ऐसा क्या हो गया कि मैं ही तुम्हारी ज़िन्दगी का सबसे बुरा इन्सान बन गया।
मुझे भी तो लोगो ने बहुत कुछ कहाँ तुम्हारे बारे मे,
पर मैने तो कभी किसी का विश्वास नही कियां, पर तुम ने इतनी जल्दी विश्वास कर लियां।
मैं आज अकेला हूं, किसी सफर की तलाश में हूं,
पर कोई साथ नही हैं मेरे, सोच रहा था , शायद आज तुम साथ होते तो मैं यूं अकेला नही होता। कोई अपना होता जिसे मे सबकुछ बताँ सकता, और कुछ दिल का बोझ भी उतर जाता।
पर सच तो ये हैं, की मैं अकेला ही हूं। तुम जा चुके हों, बहुत दूर मुझसे।
गलती किसकी थी यह मैं नही कह सकता, क्युकी मैं तुम्हे गलत नही कह सकता और खुद को हर बार सही साबित करना अब बस अच्छा नही लगता। खैर छोड़ो जो हुआ सो हुआ, अब तो सच ये है की,
मैं अकेला हूं, बिल्कुल तन्हा सा, एक तन्हा सफर के साथ, तन्हा रास्तो पर। अपने आप को तलाशता एक तन्हाराही......
©ayush_tanharaahi

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