जिसकी तपस्या के आगे ईश्वर भी नतमस्तक हो जाता हैं,
माला के धागे सा वो व्यक्तित्व ,जो परिवार रुपी माला को सहेजने मे,
खुद का अस्तित्व ही भुल जाता है ।
जो बाहर से दिखता तो सख्त हैं,
मगर संतान के लिये वो आँसू माँ से भी ज्यादा बहाता हैं।
हर खुशी मे बच्चो की वही सबसे ज्यादा होता हैं खुश ,
दुख मे सबसे ज्यादा हौंसला जो बड़ाता हैं।
वह शक्स जो होता हैं, धड़कन एक परिवार की,
जो बिना कहे अपने सारे फर्ज निभाता जाता हैं।
वही तो हैं जो पर्दे के पीछे होकर भी अपना,
हर किरदार बखुबी निभाता हैं।
हाँ वही इन्सान जो चाहकर भी अपना दुख,
परिवार को बता नही पाता, वही पिता कहलाता हैं।
आयुष पंचोली
©ayush_tanharaahi
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