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Thursday, 13 December 2018

सत्य

गुजर रहा हैं वक्त जिस तरह,
एक दिन मैं भी गुजर जाऊँगा।
आज हूँ, तो आज की जगह सोचता हूँ कल की ,
कल का क्या पता, कल मैं भी कल हो जाऊँगा।
वक्त गुजर रहा हैं,
मैं भी गुजर जाऊँगा.......!!!!!

आज हूँ जो सामने नजरों के,
तो कदर नही मेरी तुमको।
कल ओझल हो जाऊँगा,
तो खोजते रह जाओगे मुझको।
पर फ़िर ना मैं लौट पाऊँगा,
ना तुम लौट पाओगे।
वक्त के साथ मैं गुजर जाऊँगा,
पर यकिन मानो तुम भी ढ़ल जाओगे।

आज साथ हैं,
कल पता नही क्या हो।
या मैं नहीं रहूँ,
या तुम ना हो।
क्यो फिर हम इस आज को खोये,
कुछ पल दोस्ती के अपने पन के ,
इस आज मे ही क्यो ना संजोये।

क्या पता वक्त कब कैसी करवट लेले,
जो सोचा भी ना हो कुछ ऐसा खेल खेले।
क्या छुपा हैं काल के गर्भ मे,
काल ही जानता हैं।
क्यो ना उस काल से ही हँसकर,
उसे एक सत्य मान उसके,
रँग मे उसके साथ खेले।
आओ जीले आज मे क्यो,
कल के इन्तजार मे आज को,
आंखों से ओझल होता देखे।

वक्त नही होता किसी का,
गुजरते गुजरते अपने साथ बदलाव लाता जाता हैं।
कोई गुजरता, कोई बदलता ,कोई ढ़ल जाता है,
जियो आज मैं मेरे यारों कल की फिक्र मे जो जीता हैं वो खुद कल हो जाता हैं।

आयुष पंचोली
©ayush_tanharaahi

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