जिन्दगी क्या हैं,
यह प्रश्न ही बहुत बड़ा हैं।
कहीं आशाओ के दीप जला रही हैं जिन्दगी,
तो कही कोई दीप बुझा पडा हैं।
वक्त बदलता रहता हैं, परिभाषा जिन्दगी की,
जिन्दगी को वक्त ने जिन्दा रखा हैं।
कही साज , त्यौहार, परिवार हैं जिन्दगी ,
तो कही इश्क, नफरत, धौखे ने जिंदगी को छला हैं।
कौन क्या कहे, क्या हैं जिन्दगी,
किसी के लिये एक उपहार हैं खुदा का,
तो किसी के लिये अभिशाप हैं जिन्दगी।
कौई कहता हैं, जीवन की खुशी इसे,
तो किसी के लिये साँसों का बन्धन टूटने का इन्तजार हैं जिन्दगी।
राग भी हैं, द्वेष भी हैं,
अहं , पाखण्ड और लोभ भी हैं।
प्यार भी हैं, व्यापार भी हैं,
ईश्वर हैं, परिवार भी हैं।
गम हैं, भ्रम हैं,
नियम और संयम भी हैं।
खुशियाँ हैं, तो मातम भी हैं,
कुछ छोटे छोटे बन्धन भी हैं।
कुछ अपनी , कुछ पराई भी हैं,
कुछ बातें, कुछ जज्बात,
कुछ एहसासो की,परछाई भी हैं।
कुछ खट्टी, कुछ मीठी ,
कुछ बचपन, जवानी और बुढ़ापे,
के तजुर्बो की अंगडाई भी हैं।
कुछ कर्म की लिखी,
कुछ भाग्य की कही,
कुछ पाई कुछ गँवाई भी हैं।
कुछ मय के प्यालों सी,
कुछ अप्सरा के अधर मतवालो सी,
कुछ त्याग , समर्पण , बलिदानो की,
कहानी भी हैं।
जिन्दगी क्या हैं कौन जाने,
पर जिन्दगी एक कहानी भी हैं।
सबकी अलग अलग,
सबकी जुदा जुदा,
इन्तजार मे एक परम सत्य के,
बस जो बीतती जा रही हैं,
कुछ पा रही हैं, कुछ खो रही हैं,
कहीं हंस रही हैं, तो कहीं रो रही हैं।
शायद जिन्दगी इस बोझिल शरीर के,
पापों को ढो रही हैं।
सबकी कहानी कह रही हैं,
जिन्दगी झुठ हैं शायद ,
इसलिये सत्य की और अग्रसर हो रही हैं।
प्रश्न यह यक्ष प्रश्न ही रहेगा,
जिन्दगी क्या हैं.....?
अन्त तक प्रश्न ही रहेगा.......!!!!!!!!!!
आयुष पंचोली
©ayush_tanharaahi
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