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Monday, 19 November 2018

कुछ ऐसे ही

वो जब बिछ्ड़ा मुझसे,
तब वो, वो वो नही था।
जिसे हम आज भी चाहते हैं।
वो बदल चुका था,
गुरूर जो हो गया था उसे,
हमारी मोहब्बत का।
की हैं कोई एक शक्स ऐसा भी,
जिसकी हर बात मुझसे शुरु होकर मुझ पर ही खत्म होती हैं।
जिसके दिन की शुरुवात मुझसे, शामो की रंगीनियत मुझ से,
और रातों की बैचेनिया, मुझसे और मुझ तक ही हैं।

क्या गजब कहर ढाया हमारी इस बेपनाह चाहत ने हमपर,
हमारी मोहब्बत ही हमारी लाचारी बन बैठी।
जिस को चाहा था, चाहतों की हद से भी बढकर,
जिन्दगी की वही चाहत, गमो की वजह बन बैठी।

आयुष पंचोली
©ayush_tanharaahi

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