क्या खूब थी वो रात भी, क्या गजब कहर ढा रही थी। यहाँ मेरा वजूद मिट रहा था, वो वहाँ मेहंदी किसी और के नाम की रचा रही थी।
आयुष पंचोली ©ayush_tanharaahi
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