घाव गहरे तन पर लगे हैं।
फिर भी ममता दिखा रही हैं।
माँ हैं वो , अपनी संतान को ,
दुनीया से बचा रही हैं।
कोई दर्द क्या जाने उसका,
चोटिल तन, मे चोटिल मन हैं।
मुक हैं वो सबको दिखता हैं,
पर माँ तो माँ होती हैं,
यह एहसास वो करा रही हैं।
कुछ और समय अब शेष बचा हैं,
सारा स्नेह अपनी संतान को देकर,
कुछ जीवन का राज उसे वो समझा रही हैं,
दिल से दुआयें दे रही हैं,
अपनी संतान को,
और कुछ हैवानो की करनी पर ,
आँसू बहा रही हैं।
माँ हैं वो संतान को अपनी,
दुनिया से बचा रही हैं।
कोई गती के अंधे पन मे,
पैसो की माया के मद मे,
देखो कितना गिर सकता हैं।
तुम मनुष्य कहते हो जिसको,
वो जान किसी की भी हर सकता हैं।
मैं मुक कुछ कह ना पाऊँ,
कहाँ पे जाके दर्द सुनाऊँ।
कुछ क्षण मेरे पास बचे अब,
मैं तो मेरा दुलार अपने अंश,
पे न्योछाऊँ।
इन्सानो को उनकी करनी का,
एक नमूना दिखा रही हैं।
आज वो हैं इस जगह,
कल तुम भी हो सकते हो,
बस इतना सा पाठ पढा रही हैं।
वो माँ हैं,
अपनी संतान को दुनिया की,
नजरो से बचा रही हैं।
और दुनिया वालों को,
मनुष्य का घिनोना चेहरा दिखा रही हैं.....!!!!
आयुष पंचोली
©ayush_tanharaahi
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