कही जलते हैं दिये,
कही अजान होती हैं।
माँ होती हैं जहाँ,
उस घर मे ही जान होती हैं।
धर्म बन जाता हैं पहचान,
ममता की पहचान धर्म से नही होती।
माँ, अम्मी, मॉम या कहों धात्री,
यह शक्सियत किसी सम्बोधन की मोहताज नही होती।
उसने देव भी जने हैं,
जने हैं दानव भी उसने।
उसकी ममता कभी,
अपनो से अन्जान नही होती।
वो घर जन्नत बन जाता हैं,
जहाँ माँ की आँसुओ से पहचान नही होती।
वही होते हैं, तीरथ सारे,
वही काशी, काबा बस जाते हैं।
जहां माँ के चरणो की रज बेकार नही होती।
आयुष पंचोली
©ayush_tanharaahi
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