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Monday, 12 November 2018

कुछ ऐसे ही

वो आस थी मेरी ,जो काश मे बदल गई।
उसके जाने के बाद सारी जिन्दगी तलाश मे गुजर गई।

अब तो शिकवा भी नही करते हम।
वफा करके हारे हैं, इसलिये वफ़ा के नाम से भी डरते हैं हम।

वो गम की शाम जो थी, बड़ी ही बदहवास सी गुजर गई।
पूरी जिन्दगी ही उस शाम मे, सुबह के इन्तजार मे गुजर गई।

क्या खूब तमाशा किया मोहब्बत के नाम पर तुने,
मेरी हस्ती खेलती जिन्दगी भी जाम मे गुजर गई।

मैं उम्मीदों की डोर थामे खड़ा रहा एक छोर पर,
एक बेवफा मेरी उम्मीदो की चिता जला कर गुजर गई।

खैर छोड़ो अच्छा हुआ जो भी हुआ ,
हमारी उदासी मे उसको उसकी हसीं तो मिल गई।

नही हो सकी वो मेरी जिन्दगी तो क्या,
उसे उसकी जिन्दगी तो मिल गई।

क्या गुमान पाला था हमने भी इश्क का,
इश्क सच्चा कभी मुकम्मल नही होता,
चोंट खाई बेशक, पर नसीहत तो कमाल मिल गई।

आयुष पंचोली
©ayush_tanharaahi

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