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Sunday, 28 October 2018

दौलत गरीब की

कटे-फटे, मैले-कुचेले कपड़ो मे जीना आता हैं,
भूखे पेट, खाली जैब मेहनत करना आता हैं।
भीख माँग गुजारा करना रास ना हमको आयेगा,
ईज्जत को अपनी लोगों के आगे निलाम यह दिल ना करा पायेगा।

हम गरीब हैं ,माना हमने,
दोष किसी का इसमे कुछ भी नहीं।
हमने कमाई है दौलत अपने आप को ढक कर,
अपने सम्मान को अपनी नजरों मे सहेज कर।

ये दौलत कमा पायो आप इतनी आपकी औकात कहाँ हैं,
बड़े-बड़े होटलो मे छोटे-छोटे कपड़ो मे आने वालों,
अपनी मर्यादा का तुम्हे एहसास कहाँ हैं।
हम मजबुरी मे पहनते हैं, यह फटे चिथड़े,
तुम्हे हमारी मजबूरी का एहसास कहाँ हैं।

तुम्हे कहां पता क्या होती हैं, भूख,
तुम्हे तो बस हजारों के खाने से दिखावे के दो निवाले चखने होते हैं।
जितना तुम छोड़ देते हो झूठन अपनी थाली में,
उतने भोजन मे किसी गरीब के कितने दिन व्यतीत होते हैं।

फिर भी हमे अपना सम्मान अपना मान,
अपनी अना का बिखर जाना मन्जूर नही हैं।
हम भूख से मरना पसंद करेंगे जनाब,
पर खुद को खोकर अन्न को गले लगाना हमे मन्जूर नही हैं।

आयुष पंचोली
ayush_tanharaahi
(800)

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