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Tuesday 12 November 2019

हम तरक्की किये जा रहे हैं.....

आज से कुछ और शायर नये फिर आयेंगे,
कुछ के दिल टूट जायेंगे अपनी मोहब्बत को किसी और का होते देख,
किसी के हौंसले उसे उसके जीवन का नया आयाम दिलाएंगे।
पर जिन्दगी की यह गती थमने ना पायेगी,
यह गुजरती जा रही हैं तेजी हैं,
और एक दिन गुजर ही जायेगी।
कोई नही याद रखेगा की क्या थे तुम,
लोग नाम तक भुला देंगे तुम्हारा,
लोगो का कहना ही क्या तुम्हारे अपने ही फ़ोटो को धूल का ओडा देंगे एक आवरण प्यारा।
यही हकीकत हैं जिन्दगी की ,
यही सच्चाई हर रिश्ते की।
नाम याद रखा गया हैं उसी का,
जिसके कर्म परोपकार के थे,
या सिर्फ जो पापी समाज के थे।
बाकी महत्व यह समाज देता नही कभी किसी को,
छीन लेता हैं यह खुशियाँ भी किसी की सारी,
जात-पात का ओढ़े चोला छलता हैं यह हर एक तबके को।
इसने संस्कार दिये नही, इसने सिर्फ नीयमो को ढाल बनाया हैं,
सत्य को सदा छुपाता आया, पाठ सदा ही खुद के सर्वस्व का पढाता आया,
इसने लोगो की सोच को हरा हैं, इसलिये आजके दौर मे हर एक शख्स सिर्फ धौका देने को खड़ा हैं।
अपने ही पीठ मे छुरा घोंपे जा रहे हैं,
क्या यही सदी की तरक्की हैं,की हम अविष्कार तो ढ़ेरो कर रहे हैं,
मगर अपने मूल से , अपने संस्कारो और रीति रिवाजो से ही दूर होते जा रहे हैं।
समय ने अपने पाश मे सबको जकड़ लिया हैं,
धन के नशे ने रिश्तों को भी व्यापारिक रूप दिया हैं,
यही हम अपनी आने वाली पीढ़ी को परोसे जा रहे हैं।
वस्त्र और सोच हर बढ़ते दिन के साथ घटते जा रहे हैं,
लोगो के आदर्श आज अनैतिक सम्बन्धो वाले युगल होते जा रहे हैं,
बस इसी कारण तलाक हजारो गुना , और वृद्धाश्रम हर साल बढ़ते जा रहे हैं।
समझ से परे यह सत्य होता जा रहा हैं,
क्या हम उतने अच्छे भी हैं, जितने नजर आ रहे हैं,
पर सच कहूँ तो हम अपने क्रिया कलपो से कही आज की पीढ़ी की नजरो मे अपना ही कल क्या देख पा रहे हैं......!!!!!!
जिन्दगी को हम जी कहाँ रहे हैं,
हम तो बस खुद को ही छले जा रहे हैं।
समय के साथ आगे बढने तो लगे हैं हम,
मगर अपनी सांत्वनाओ, अपनी भावनाओ, अपने संस्कार और रीति रिवाजो की नित नई चिता जला रहे हैं।
हम तरक्की किये जा रहे हैं.........!!!!!!!!!!🙏🙏🙏🙏🙏
©आयुष पंचोली
©ayush_tanharaahi
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