दुनिया का उसूल हैं,
वह हर जगह बुराई ढूँढ ही लेती हैं।
हर बार मांगती हैं जिससे,
कुछ बिगड़ने पर दोष भी उसी को ही देती हैं।
अपनी गलतियों का अन्दाजा लगाता नही कोई,
यह दुनिया हैं, हर किसी मे खोट खोज ही लेती हैं।
हर किसी को यहां स्वार्थ बस अपना नजर आता हैं,
किसी और की तकलिफो की परवाह यहां कब किसी को होती हैं।
सच कहने वाला यहां बुरा बन जाता हैं,
धर्म के साथ खड़े रहने वाला कट्टर कँह दिया जाता हैं।
कुर्सी के लिये ही यहां सारा खेल किया जाता हैं,
आडम्बर का चोला ओड़े हर कोई सन्यासी बन जाता हैं।
राम और सीता का चरित्र पसंद नही यहां किसी को,
क्योकी पर स्त्री और पुरुष से सम्बंध बनाना ही यहां आधुनिकता का मतलब समझा जाता हैं।
तन को ढँक कर नही मान यहां नंगेपन को दिया जाता हैं,
पैसा ही भगवान हुआ अब यहां, पैसो के लिये अपनेपन का झुठा षडयंत्र रचा भी जाता हैं।
कैसे किसी को अपना कहूँ मैं,
सब यहां धोखे ही देते हैं।
नकाब ओढकर चेहरो पर,
साँप सभी आस्तीन मे ही छुपे रहते हैं।
मौका पाकर के हर कोई यहां,
वार पीठ पर करता हैं।
यह दुनिया ऐसी ही हैं यारो,
यहां बस झुठ और षडयंत्र का ही कारोबार चलता हैं।
©आयुष पंचोली
©ayush_tanharaahi
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