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Tuesday 5 February 2019

नव उदय

वो तिमिर मिटाकर आ बैठा,
उजियाली छंटा बिखेर रहा।
क्यों हारे बैठे हो तुम,
देखो वो मरिचय कैसा तेज बिखेर रहा।
जो होना था वो हो बैठा,
अंधियारा था जो वो जा रहा।
क्या मोह पाश मे बंधते हो,
क्या हैं तुम्हारा, क्या खोने से तुम डरते हो।
जो गया उसे तुम जाने दो,
जो आने वाला हैं, स्वागत उसका करो।
नव सुबह हैं, नव हैं धारा,
नव वायू और नव हैं उजियारा ।
नव बसंत आने हैं वाला,
पृकृति मे रोमांच छाने हैं वाला।
खोया जो उसे भुला दो,
इस बसंत की नव यह सुबह हैं,
इसको जीवन राग बना दो।
पीछे छुटा जो उसे भुला दो,
जिन्दगी स्वागत करती हैं तुम्हारा,
एक बार आत्मा की पुकार सुन,
उस परमआत्मा के लिये ही खुलकर मुस्कुरा दो।
हजार नकारात्मक सोचो पर भी,
एक सकारात्मक विचार भारी होता हैं।
जो हार कर बैठ जाये गुणगान होता नही उसका,
हार को जीत मे बदलने वाला ही इन्सान महान होता हैं।

आयुष पंचोली
©ayush_tanharaahi

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