समझ नही आता मुझको,
क्या सच मे भीख मांगना मजबूरी हैं।
या कोई घृणित कार्य के ऊपर ओढ़ी चादर मैली हैंं।
अच्छे सक्षम युवा भी देखो कैसे हाथ बढ़ाते हैं,
लेकर कटोरा ना जाने क्यो मन्दिर, मस्जिद , चौराहो पर खड़े हो जाते हैं।
या यह सिर्फ एक तरीका हैं, मेहनत से पीछा छुड़ाने का।
सरकार ने कितना कार्य किये इस बुराई को मिटाने के,
सस्ता खाना, रेन बसेरा, मुफ्त की शिक्षा मिलती हैं,
ना जाने क्यो फिर भी लोगों को भीख मांगना पढ़ती हैं।
कुछ लोगों के तन पर गहनों का पहरा होता हैं,
फ़िर भी उनके हाथ मे क्यो भीख का कटोरा होता हैं।
क्या सच मे वह इतने लाचार हैं की कमा नही कुछ सकते हैं,
या फ़िर भीख मांगना मजबूरी नही ऐसे लोगों के धन्धे हैं।
कुछ लोगों की करोड़ो की सम्पत्ति का आकलन हुआ,
पुछा जब उनसे कार्य था उनका, सबको था आश्चर्य हुआ।
कोई ईमानदारी का कार्य कर जीवन पर्यंत ना जो कमा पाया,
कैसे कुछ लोगों ने भीख मांग मांग कर करोड़ो का धन कमाया।
क्या सोचा नही कभी किसी ने क्या सच मे जिन्हे हम दान हैं देते,
वो इसके हकदार भी हैं?
या शायद हम ही हैं जो,
देश मे फैलती इस बिमारी के सूत्रधार भी हैं।
जो सच मे मजबूर हैं , जिनको मदद चाहिये अपनी कुछ मजबूरी मे,
वह कभी किसी के आगे हाथ फैलाते नही।
ऐसे मजबूर लोगों की अच्छाई का फायदा,
कुछ बैगेरत उठाते हैं, भीख को मजबूरी नही जो अपना धन्धा बताते हैं।
ना जाने क्यो हम भी इनको बढ़ावा देते जाते हैं,
मन्दिर , मस्जिद खुद जाते माँगने,
कुछ अच्छा करने की दुआ मांगने,
बाहर आते ही इनको भीख देकर क्या सिद्ध करना चाहते हैं,
जो सच मे मजबूर हैं, क्या हम उनको जान पाते हैं।
करना हैं तो कुछ ऐसा करो ,
जब दिखे कहीं कोई कुछ मांगता तो खबर उसकी नगरीय प्रशासन को करो।
वो उसका त्वरित संज्ञान लेकर उसको सुविधा प्रदान कर देंगे,
इस बहाने ही सही आप भी सच जान जायेंगे,
क्या सच मे भीख मांगना मजबूरी हैं या धन्धा इसका उत्तर जान जायेंगे।
गर सच मे मजबूर हैं वो इंसान तो वो आपको दुआ ही देंगे,
जो मजबूर नही हैं जिनका धन्धा हैं यह, वह वहाँ से प्रस्थान कर लेंगे।🙏
आयुष पंचोली
©ayush_tanharaahi
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