शायद गलत हूँ मैं,
शायद बुरा भी हूँ।
हाँ गलत हूँ मैं, जो किसी पर भी आरोप लगा देता हूँ,
क्यो नही देख पाता मैं, मैं खुद भी तो कितनी ही बुराईयों का एक घड़ा हूँ।
हाँ बुरा हूँ मैं, बेवजह ही किसी को भी दुख पहुँचा देता हूँ,
क्यो नही समझ पाता मैं, मैं किसी को दुख पहुँचा सुख कहाँ पा सकता हूँ।
शायद गलत हूँ मैं,
शायद बुरा भी हूँ।
एक बात सोचता हूँ, किसने दिया मुझे यह अधिकार,
करता रहूँ जो अपने कर्मो से अपने शब्दों से औरो पर प्रहार।
किसने दिया मुझे यह अधिकार,
की उठाऊँ मैं, किसी के चरित्र पर कोई सवाल।
शायद गलत हूँ मैं,
शायद बुरा भी हूँ।
मैं मनुष्य हूँ ,जानता हूँ मैं,
बुराईयों का पुतला हूँ मैं, यह मानता हूँ मैं।
मैं सवाल हूँ खुद ईश्वर के लिये,
अहं की परकाष्टा हूँ इस नश्वर जीवन के लिये।
शायद गलत हूँ मैं,
शायद बुरा भी हूँ।
कही राम की मर्यादा की बातें करता हूं मैं,
कही कृष्ण के प्रेम को महान बताता हूँ।
पर बात आती हैं जब खुद पर , उसी प्रेम को अपमानित कर,
सभी मर्यादाओं का उल्लंघन खुद ही कर आता हूँ।
शायद गलत हूँ मैं,
शायद बुरा भी हूँ।
रावण को बुरा बताता हूं मैं,
पर आसाराम को पुज्य मानता हूँ।
गीता और कुरान के नाम पर लड़ जाता हूँ,
पर उन्हे कभी पढ़ समझ नही पाता।
शायद गलत हूँ मैं,
शायद बुरा भी हूँ।
पर एक बात कहूँ, मैं जैसा भी हूँ,
मनुष्य हूँ, अपने कर्म से अपना भाग्य बना सकता हूँ।
मैं चाहू जिसे ईश्वर बना दूँ,
मैं चाहू जिसे राक्षस बना सकता हूं।
जो मेरी दुनिया का हिस्सा हैं वह मेरा हैं,
जो नही वह मेरा नही ।
बस इसी सोच का पहरा,
मेरे दिलो-दिमाग पर गहरा हैं।
बस इसलिये ही गलत हूँ मैं,
और बुरा भी हूँ।
आयुष पंचोली
©ayush_tanharaahi
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